समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, September 24, 2008

हादसे के बाद ही क्यों आते हैं मोहब्बत के पैगाम-व्यंग्य कविता

हादसों के बाद ही क्यों आते हैं
मोहब्बत के सभी जगह पैगाम
दिल में बसे अल्फाजों को
चाहे जब भेज दो
इंतजार का क्या काम

कहीं शैतानों की वारदात होते ही
फरिश्ते करने लगते हैं
अमन लाने का काम
एक हादसें का असर खत्म होते ही
फिर नजर नहीं आते
शायद दूसरे के इंतजार में सो जाते
और शैतान कर जाते अपना काम
वारदात से दे जाते फरिश्तों को
अपने करने का नाम

ढेर सारे मोहब्बत और अमन के संदेश और कहानियां
चलकर आ जाती हैं सामने
पढ़ने और देखने के लिये
वह वह पहले क्यों नहीं आती
जब होता है जहां में आम इंसान मोहब्बत और अमन लिये
हादसे से हैरान लोग
शैतानों के सुनते हैं नाम
शायद आम इंसानों के कान खुले देखकर
फरिश्ते लेकर पहुंचते हैं अपना मोहब्बत और अमन का पैगाम
वारदात की कटु ध्वनि का असर अभी खत्म नहीं होता
कि शोर के साथ आ जाता अमन का पैगाम

कहें महाकवि दीपक बापू
दायें तरफ दिखती शैतान की प्रेम दास्तान
बायें छपते फरिश्तों के अमन के बयान
दोनों के बीच कैसा है रिश्ता
फूल और कांटे जैसा दिखता
दुनियां बनाने वाले ने
फरिश्तों की परीक्षा के लिये
शैतान बनाया
या शैतान को कभी कभार फुरसत
देने के लिये
फरिश्तों को बनाया
हम तो ठहरे आम इंसान
यह कभी समझ में नहीं आया
एक तरफ हादसों का किनारा है
दूसरी तरफ अमन का नारा
बीच में खड़े सभी लोग
इधर देखते तो
उधर से आवाज आती
उधर देखते तो
इधर से हादसे की खबर आती
कहीं धमाकों की जोरदार आवाज
तो कही अमन की कहानियां
ऐसी जंग चलती दिख रही है
जिसका कब होगा अंजाम
जुबान होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
आंख होते हुए ही प्रकाश विहीन
हो गये है हम इंसान आम
...........................

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Saturday, September 20, 2008

कदम कदम पर बिकती है भलाई यहाँ-हिन्दी शायरी

हर जगह सर्वशक्तिमान के दरबार में
बैठा कोई एक सिद्ध

आरजू लिए कोई वहां
उसे देखता है जैसे शिकार देखता गिद्द
लगाते हैं नारा
"आओ शरण में दरबार के
अपने दु:ख दर्द से मुक्ति पाओ
कुछ चढ़ावा चढ़ाओ
मत्था न टेको भले ही सर्वशक्तिमान के आगे
पर सिद्धों के गुणगान करते जाओ
जो हैं सबके भला करने के लिए प्रसिद्ध

इस किनारे से उस किनारे तक
सिद्धो के दरबार में लगते हैं मेले
भीड़ लगती है लोगों की
पर फिर भी अपना दर्द लिए होते सब अकेले
कदम कदम पर बिकती है भलाई
कहीं सिद्ध चाट जाते मलाई
तो कहीं बटोरते माल उनके चेले
फिर भी ख़त्म नहीं होते जमाने से दर्द के रेले
नाम तो रखे हैं फरिश्तों के नाम पर
फकीरी ओढे बैठे हैं गिद्द
उनके आगे मत्था टेकने से
अगर होता जमाने का दर्द दूर
तो क्यों लगते वहां मेले
ओ! अपने लिए चमत्कार ढूँढने वालों
अपने अन्दर झाँक कर
दिल में बसा लो सर्वशक्तिमान को
बन जाओ अपने लिए खुद ही सिद्ध

--------------------------------


दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Friday, September 12, 2008

सास पर लिखी दो कवितायें-व्यंग्य कविता

नयी बहू कवियित्री है
जब सास को पता लगी
तो उसकी परीक्षा लेने की बात दिमाग में आयी
उसने उससे अपने ऊपर कविता लिखने को कहा
तो बहू ने बड़ी खुशी से सुनाई
‘मेरी सास दुनियां में सबसे अच्छी
जैसे मैंने अपनी मां पायी
बोलना है कोयल की तरह
चेहरा है लगता है किसी देवी जैसा
क्यों न सराहूं अपना भाग्य ऐसा
चरण धोकर पीयूं
ऐसी सास मैंने पायी’

सास खुश होकर बोली
‘अच्छी कविता करती हो
लिखती रहना
मेरी भाग्य जो ऐसी बहू पाई’

दो साल बाद जब वह
कवि सम्मेलन जाने को थी तैयार
सास जोर से चिल्लाई
‘क्या समझ रखा है
घर या धर्मशाला
मुझसे इजाजत लिये बिना
जब जाती और आती हो
भूल जाओं कवि सम्मेलन में जाना
हमें तुम्हारी यह आदत नहीं समझ मंें आयी’

गुस्से में बहू ने अपनी यह कविता सुनाई
‘कौन कहता है कि सास भी
मां की तरह होती है
चाहे कितनी भी शुरू में प्यारी लगे
बाद में कसाई जैसी होती है
हर बात में कांव कांव करेगी
खलनायिका जैसा रूप धरेगी
समझ लो यह मेरी आखिरी कविता
जो पहली सुनाई थी उसके ठीक उलट
अब मत रोकना कभी
वरना कैसिट बनाकर रोज
सुनाऊंगी सभी लोगों को
तुम भूल जाओ अपना रुतवा
मैं नहीं छोड़ सकती कविताई’

सास सिर पीटकर पछताई
‘वह कौनसा मुहूर्त था जो
इससे कविता सुनी थी
और आगे लिखने को कहा था
अब तो मेरी मुसीबत बन आई
अब कहना है इससे बेकार
कहीं सभी को न सुनाने लगे
क्या कहेगा जब सुनेगा जमाई
वैसे ही नाराज रहता है
करने न लगे कहीं वह ऐसी कविताई

.........................................

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Thursday, September 11, 2008

टूट गये कामयाब होने के सपने-हास्य कविता

फंदेबाज ने रखा कंधे पर हाथ
और बोला
‘क्या बात है दीपक बापू
अपनी घर से दूर इस
घर में तांकझांक किये जा रहे हो
कभी सिर आगे कर
अंदर देखते हो
कभी पीछे कर लेते हो
यह क्या राज है
कहीं किसी को लाईन तो नहीं मार रहे
कुछ माल पार करने के लिये तो नहीं ताड़ रहे
चक्कर में मत पड़ो अपने हिट के
चलो अब तुम घर अपने


अपनी टोपी को संभालते हुए
कुछ नाराज होकर बोले महाकवि दीपक बापू
‘कमबख्त! जब भी हम कुछ खास कर रहे होते
कहीं हास्य कविता तलाशने के लिये
विषय की आस कर रहे होते
तुम चले आते हो
पानी फेर जाते हो
यहां हम देखने आये थे काका और काकी की जंग
शायद जम जाये किसी हिट कविता का रंग
दोनों लड़ते हैं
काका देते काकी को ताना
काकी भी गाती है धमकी का गाना
इस जंग में मिल सकता है
कोई बात लिखने लायक
खड़े थे इसी इंतजार में
शायद कुछ जोरदार विषय मिल जाये
लिखकर हम भी हो जायें हास्य नायक
आजकल लोगों को
भला गंभीर कवितायें कहां भातीं हैं
बेतुकी हों भले ही
हास्य कवितायें भी सभी के दिल में छातीं हैं
या तो लिखो प्यार पर
जिसमेेंं जिस्म के अंग फड़फड़ायें
या दर्द उबारो इंसानों का सरे राह
ताकि बदनामी के डर से
उनके पांव अधिक लड़खड़ायें
दोनों काम हम नहीं कर पाते
लिखते कोई गंभीर आलेख
तो पड़ने वाले ही मजाक उड़ाते
दो लोगों की जंग को देखना
और पढ़ना सभी को अच्छा लगता है
चुपचाप दर्द बांटे उसकी चर्चा
किसी को नहीं सुहाती
करे खुलेआम कत्ल उसकी ख्याति
अखबारों में सुर्खियां पाती
ऐसे में देख रहे थे इस घर में
शायद क्लेश हो जाये
हमारे लिये कोई जोरदार दृश्य
सामने आकर पेश हो जाये
पर तुमने किया आकर खाना खराब
अब तो फ्लाप से हिट होना है बस ख्वाब
चलो हम भी अब चलते हैं घर
टूट गये कामयाब होने के सपने

.....................................

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Monday, September 1, 2008

मुफ्त में स्वयं को खलनायक बनाया-हास्य व्यंग्य कविता


उदास होकर फंदेबाज घर आया
और बोला
‘दीपक बापू, बहुत मुश्किल हो गयी है
तुम्हारे भतीजे ने मेरे भानजे को
दी गालियां और घूंसा जमाया
वह बिचारा तुम्हारी और मेरी दोस्ती का
लिहाज कर पिटकर घर आया
दुःखी था बहुत तब एक लड़की ने
उसे अपनी कार से बिठाकर अपने घर पहुंचाया
तुम अपने भतीजे को कभी समझा देना
आइंदा ऐसा नहीं करे
फिर मुझे यह न कहना कि
पहले कुछ न बताया’

सुनकर क्रोध में उठ खड़े हुए
और कंप्यूटर बंद कर
अपनी टोपी को पहनने के लिये लहराया
फिर बोले महाकवि दीपक बापू
‘कभी क्या अभी जाते हैं
अपने भाई के घर
सुनाते हैं भतीजे को दस बीस गालियां
भले ही लोग बजायें मुफ्त में तालियां
उसने बिना लिये दिये कैसे तुम्हारे भानजे को दी
गालियां और घूंसा बरसाया
बदल में उसने क्या पाया
वह तो रोज देखता है रीयल्टी शो
कैसे गालियां और घूंसे खाने और
लगाने के लिये लेते हैं रकम
पब्लिक की मिल जाती है गालियां और
घूसे खाने से सिम्पथी
इसलिये पिटने को तैयार होते हैं
छोटे पर्दे के कई महारथी
तुम्हारा भानजा भी भला क्या कम चालाक है
बरसों पढ़ाया है उसे
सीदा क्या वह खाक है
लड़की उसे अपनी कार में बैठाकर लाई
जरूर उसने सलीके से शुरू की होगी लड़ाई
सीदा तो मेरा भतीजा है
जो मुफ्त में लड़की की नजरों में
अपनी इमेज विलेन की बनाई
तुम्हारे भानजे के प्यार की राह
एकदम करीने से सजाई
उस आवारा का हिला तो लग गया
हमारे भतीजा तो अब शहर भर की
लड़कियों के लिये विलेन हो गया
दे रहे हो ताना जबकि
लानी थी साथ मिठाई
जमाना बदल गया है सारा
पीटने वाले की नहीं पिटने वाले पर मरता है
गालियां और घूंसा खाने के लिये आदमी
दोस्त को ही दुश्मन बनने के लिये राजी करता है
यह तो तुम्हारे खानदान ने
हमारे खानदान पर एक तरह से विजय पाई
हमारे भतीजे ने मुफ्त में स्वयं को खलनायक बनाया

.........................................................

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ