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Saturday, February 28, 2009

नज़र ही बसंत और पतझड़ लाती है-हिंदी शायरी

हृदय को आह्लादित करता बसंत बीत जाता है
तो बाद में आती पतझड़ भी
जीवन के सत्य से परिचय कराती है

जो खिल हैं पत्ते और फूल
एक दिन झड़ जाने हैं
बिताना है टहनियों को कुछ महीने
जेठ माह की आग में अकेले जलते हुए
फिर बरसात में संगी साथी आने हैं
बनना और बिगड़ना प्रकृति की नियति हैं
कभी ठंडी तो कभी गर्म होकर
बहती हवाएं यही अनुभूति कराती हैं

कितना मुश्किल है
जीवन में पतझड़ का सामना करना
जब अपने से विश्वास उठ जाता है
कहीं उम्र तो कही अभावों से
कहीं अपने स्वभावों से
हारे आदमी से उसका मन ही रूठ जाता है
दिल में उमंग हो तो बसंत हर पल है
मौसमों के आने जाने के आभासों को समझें
तो पतझड़ भी एक छल है
दृश्य वैसे ही आते हैं सामने
जैसी जिंदगी में अपनी नज़र बन जाती है
वही बसंत और पतझड़ लाती है

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Tuesday, February 24, 2009

ज़ंग की तरह जिंदगी जीने के आदी हो गये हैं लोग-हिंदी गज़ल

बहुत लोग है इस जहां में झूठे आंसू बहाने वाले
वैसे ही उनके साथ होते,नकली हमदर्दी दिखाने वाले
दूसरों के क्या समझेंगे, अपने ही जज्बात नहीं समझते
निगाहें बाहर ही ठहरीं होतीं, अंदर लगे दिल पर ताले
ताकत पाने की चाहत में सभी ने खुद को किया लाचार
हैरान होते हैं वह लोग,बैठे जमाने के लिये जो दर्द पाले
घाव होने पर लोग आंसू बहाते और भरते सिसकियां
सूख तो फिर टकराते उसी पत्थर से, जिसने जख्म कर डाले
जंग की तरह जिंदगी जीने के आदी हो गये है दुनियां के लोग
अमन का पैगाम क्या समझेंगे, सभी है बेदर्द दिल वाले

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Thursday, February 19, 2009

अपनी समझ लादने वालों की भीड़-हिंदी शायरी

अब खूब पीना शराब
नहीं कहेगा कोई खराब
क्योंकि वह आजादी का पैमाना बन गयी है
कदम बहकने की फिक्र मत करना
इंसानी हकों के के नाम पर लड़ने वाले
तुम्हें संभाल लेंगे
इंतजार में खड़े हैं मयखानों के बाहर
कोई लड़खड़ाता हुआ आये तो
उसे सजा सकें अपनी महफिल में
हमदर्दी के व्यापार के लिये
उनके ठिकानों पर दर्द लेकर आने वालों की
भीड़ कम हो गयी है
...............................
अपनी अक्ल का इस्तेमाल करोगे
तो दुश्मन बहुत बन जायेंगे
क्योंकि दूसरों पर
अपनी समझ लादने वालों की भीड़ बढ़ गयी है
जो ढूंढते हैं कलम और तलवार
अपने हाथों में लेकर
जो सच में तुम आजाद दिखे तो
डर जायेंगे
आजादी की बात कर
वह तुम्हें गुलाम बनायेंगे
नहीं माने तो विरोधी बन जायेंगे

..................................

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Friday, February 13, 2009

बसंत का पूरा महीना ही आनंद मनाने का है-आलेख

वैलंटाईन डे की चर्चा आजकल सुर्खियों में हैं। इसका कुछ लोग विरोध करते हैं तो कुछ नारी स्वतंत्रता के नाम पर इसे मनाये रखने के पक्षधर हैं। सही तो पता नहीं है पर कोई बता रहा था कि पश्चिम मेंे वैलंटाइन नाम के कोई संत हो गये हैं जिनकी स्मृति में यह दिवस मनाया जाता है। हिंदी के गहन ज्ञान रखने वाले एक सज्जन ने बताया कि इसे ‘शुभेच्छु दिवस’ कहा जाता है। बाजार और प्रचार में इसे प्रेम दिवस कहा जा रहा है और निश्चित रूप से इसका लक्ष्य युवाओं को प्रेरित करना है ताकि उनकी जेब ढीली की जा सके।
आज से दस पंद्रह वर्ष पूर्व तक अपने देश में पश्चिम में मनाये जाने वाले वैलंटाइन डे (शुभेच्छु दिवस) और फ्रैंड्स डे (मित्र दिवस) का नाम नहीं सुना था पर व्यवसायिक प्रचार माध्यमों ने इसे सुनासुनाकर लोगोें के दिमाग में वह सब भर दिया जिसे उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रायोजकों को युवक और युवतियों एक उपभोक्ता के रूप में मिल सकें।

मजेदार बात यह है कि वैलंटाईन डे को मनाने का क्या तरीका पश्चिम में हैं, किसी को नहीं पता, पर इस देश में युवक युवतियां साथ मिलकर होटलों में मिलकर नृत्य कर इसे मनाने लगे हैं। प्रचार माध्यमों का मुख्य उद्देश्य देश के युवा वर्ग में उपभोग की प्रवृत्ति जाग्रत करना है जिससे उसकी जेब का पैसा बाजार में जा सके जो इस समय मंदी की चपेट में हैं। आप गौर करें तो इस समय पर्यटन के लिये प्रसिद्ध अनेक स्थानों पर लोगों के कम आगमन की खबरें भी आती रहती हैं और प्रचार और विज्ञापनों पर निर्भर माध्यमों के लिये यह चिंता का विषय है।

बहरहाल हम इसके विरोध और समर्थन से अलग विचार करें। इस समय बसंत का महीना चल रहा है। बसंत पंचमी बीते कुछ ही दिन हुए हैं। यह पूरा महीना ही प्रेम रस पीने का है। जो कभी कभार सोमरस पीने वाले हैं वह भी इस समय उसका शौकिया सेवन कर लेते हैं। पश्चिम में शायद लोगों को समय कम मिलता है इसलिये उन्होंने आनंद मनाने के लिये दिन बनाये हैं पर अपने देश में तो पूरा महीना ही आनंद का है फिर एक दिन क्यों मनाना? अरे, भई यह तो पूरा महीना है। चाहे जैसा आनंद मनाओ। बाहर जाने की क्या जरूरत है? घर में ही मनाओ।

दरअसल संकीर्ण मानसिकता ने संस्कृति और संस्कारों के नाम पर लोगों की सोच को विलुप्त कर दिया। हालत यह है कि बच्चे शराब पीते हैं पर मां बाप को पता नहीं। बाप के सामने बेटे का पीना अपराध माना जाता है। सच बात तो यह है कि परिवार में अपने से छोटों से जबरन सम्मान कराने के नाम पर कई बुराईयां पैदा हो गयी हैं। कहा जाता है कि जिस प्रवृत्ति को दबाया जाता है वह अधिक उबर कर सामने नहीं पाती।

एक पिता को पता लगा कि‘उसका पुत्र शराब पीता है।’
पिता समझदार था। उसने अपने पुत्र से कहा-‘बेटा, अगर तूने शराब पीना शुरु किया है तो अब मैं तुम्हें रोक नहीं सकता! हां, एक बंदिश मेरी तरफ से है। वह यह कि जितनी भी पीनी है यहां घर में बैठकर पी। मुझसे दूसरे काम के लिये पैसे लेकर शराब पर मत खर्च कर। तेरी शराब की बोतल मैं ले आऊंगा।’
लड़के की मां अपने पति से लड़ने लगी-‘आप भी कमाल करते हो? भला ऐसा कहीं होता है। बेटे को शराब पीने से रोकने की बजाय उसे अपने सामने बैठकर पीने के लिये कह रहे हो। अरे, शराब पीने में बुराई है पर उसे अपने बड़ों के सामने पीना तो अधिक बुरा है। यह संस्कारों के विरुद्ध है।
पति ने जवाब दिया-‘याद रखना! बाहर शराब के साथ दूसरी बुराईयां भी आयेंगी। शतुरमुर्ग मत बनो। बेटा बाहर पी रहा हो और तुम यहां बैठकर सबसे कहती हो ‘मेरा बेटा नहीं पीता‘। तुम यह झूठ अपने से बोलती हो यह तुम्हें भी पता है। उसे अपने सामने बैठकर पीने दो। कम से कम बाहरी खतरों से तो बचा रहेगा। ऐसा न हो कि शराब के साथ दूसरी बुरी आदतें भी हमारे लड़के में आ जायें तब हमारे लिये हालात समझना कठिन हो जायेगा।’
इधर बेटे ने एक कुछ दिन घर में शराब पी। फिर उसका मन उचट गया और वह फिर उस आदत से परे हो गया। पिता ने एक बार भी उसे शराब पीने से नहीं रोका।
अगर आदमी की बुद्धि में परिपक्वता न हो तो स्वतंत्रता इंसान को अनियंत्रित कर देती है और जिस तरह अनियंत्रित वाहन दुर्घटना का शिकार हो जात है वैसे ही मनुष्य भी तो सर्वशक्तिमान का चलता फिरता वाहन है और इस कारण उसके साथ यह भय रहता है।
भारतीय अध्यात्म ज्ञान और हिंदी साहित्य में प्रेम और आनंद का जो गहन स्वरूप दिखता है वह अन्यत्र कहीं नहीं है। वेलंटाईन डे पर अंग्रेज क्या लिखेंगे जितना हिंदी साहित्यकारों ने बंसत पर लिखा है। बसंत पंचमी का मतलब एक दिन है पर बसंत तो पूरा महीना है। वैलंटाईन डे का समर्थन करने वालों से कुछ कहना बेकार है क्योंकि नारों तक उनकी दुनियां सीमित हैं पर जो इसका विरोध करते हैं उनको भी जरा बसंत पर कुछ लिखना चाहिये जैसे कवितायें और कहानियां। उन्हें बसंत का महात्म्य भी लिखना चाहिये। इस मौसम में न तो सर्दी अधिक होती है न गर्मी। हां आजकल दिन गर्म रहने लगे हैं पर रातें तो ठंडी हो जाती हैं-प्रेमरस में रत रहने और सोमरस को सेवन करने अनुकूल। किसी की खींची लकीर को छोटा करने की बजाय अपनी बड़ी लकीर खींचना ही विद्वता का प्रमाण है। वैलंटाईन डे मनाने वालों को रोकने से उसका प्रचार ही बढ़ता है इससे बेहतर है कि अपने बंसत महीने का प्रचार करना चाहिये। वैसे आजकल के भौतिक युग में बाजार अपना खेल दिखाता ही रहेगा उसमें संस्कृति और संस्कारों की रक्षा शारीरिक शक्ति के प्रदर्शन से नहीं बल्कि लोगों अपनी ज्ञान की शक्ति बताने से ही होगी।हां, यह संदेश उन लोगों को नहीं दिया जा सकता जिनको आनंद मनाने के लिये किस्मत से एक दिन के मिलता है या उनकी जेब और देह का सामथर््य ही एक दिन का होता है। सच यही है कि आनंद भी एक बोतल में रहता है जिसे हर कोई अपने सामथर््य के अनुसार ले सकता है। अगर आनंद में सात्विक भाव है तो वह परिवार वालों के सामने भी लिया जा सकता है। अंतिम सत्य यह है कि आंनद अगर समूह में मनाया जाये तो बहुत अच्छा रहता है क्योंकि उससे अपने अंदर आत्म विश्वास पैदा होता है। वैलंटाईन डे और फ्रैंड्स डे जैसे पर्व दो लोगों को सीमित दायरे में बांध देते हैं। इस अवसर पर जो क्षणिक रूप से मित्र बनते हैं वह लंबे समय के सहायक नहीं होते।
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Saturday, February 7, 2009

सभी लोग मिलकर नाचें और गायें-हास्य व्यंग्य कविता

आओ, देश में गरीबी मिटाने के लिये
सभी लोग मिलकर नाचें और गाये
हम कितने गंभीर हैं दुनियां को बतायें

आओ, देश की भुखमरी मिटाने के लिये
सभी लोग मिल नाचें और गायें
कितना दर्द हैं हमारे अंदर
पूरी दुनियां को बतायें

आओ, निराश्रितों को आश्रय देने के लिये
सभी लोग मिलकर नाचे और गायें
कितने दयालू हैं, सारी दुनियां को समझायें

आओ, देश की नारियों को सम्मान देने के लिये
सभी लोग मिलकर नाचें और गायें
अपने अंदर का स्वाभिमान दुनियां को दिखायें

आओ, पर्यावरण की रक्षा करने के लिये
सभी लोग मिलकर नाचें और गायें
अपनी फिक्र से दुनियां के अवगत करायें

याद रखें
सभी लोगों से आशय है कि
फिल्म अभिनेता, पर्दे के मसखरे और
प्रसिद्ध हस्तियां जिनकी
जमाना कद्र करता हो
वही आमंत्रित हैं, नाचने और गाने के लिये
बाकी केवल पर्दे के सामने बैठ जायें

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Tuesday, February 3, 2009

शायरी का पोस्टमार्टम-लघु व्यंग

सड़क पर रोज लड़का उस लड़की को देखता था। बात करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता था। आखिर उसने अपने मित्र से पूछकर एक रास्ता निकाला। एक बच्चे को एक कागज पकड़+ा दिया और उसे चाकलेट का लालच देकर उसे उस लड़की को देने के लिये कहा।

बच्चे ने वह कागज लिया और उस लड़की को पकड़ाते हुए लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने दिया है।’
लड़की ने उस बच्चे के हाथ से वह कागज ले लिया और घूरकर उस लड़के को देखने लगी। उसे हाथ में आते ही लड़का वहां से खिसक लिया। लड़के ने उसमें लिखा था कि ‘मैं तुम्हें बहुत मोहब्बत करता हूं। तुम्हारी वजह से मेरी रात की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। मैं तो बस एक ही बात कहना हूं कि
चांदनी चांद से होती है सितारों से नहीं
मोहब्बत एक से होती है हजारों से नहीं

तुम्हारा बस तुम्हारा
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लड़की ने उसे पढ़ा और अगले दिन रास्ते से अपने मंगेतर को साथ लेकर निकली और उस लड़के के पास गयी और एक कागज का टुकड़ा उसके हाथ में थमा दिया
उसमें लिखा था कि
तुम भी किस जमाने में रह रहे हो। तुम्हारा यह पत्र मैंने अपने मंगेतर को दिखाया जो पोस्टमार्टम करता है। उसने तुम्हारी शायरी का पोस्टमार्टम कुछ इस तरह किया है।
न चांद में होती है न सितारों में होती है
रौशनी उनमें तो सूरज की आग से ही होती है
आदमी चाहे चेहरे बदल कर रोज करे
पर एक बार में मोहब्बत तो बस एक से ही हेाती है

याद रखना मेरे साथ मंगेतर था। इस बार वह खामोश रहा अगली बार वह जवाब लिख कर लायेगा। वह पुरानी शायरियों का पोस्टमार्टम करता है।
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