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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, May 26, 2011

प्रलय का दिन-हिन्दी व्यंग्य लेख (pralaya ka din-hindi hasya vyangya

     अमेरिका के एक तथाकथित ज्योतिषी ने 21 मई 2011 को प्रलय का दिन घोषित किया, मगर हुआ कुछ नहीं। विशेषज्ञों ने पहले ही बता दिया था कि कोई भी ऐसी अंतरिक्षीय आपदा की संभावना नहीं है जिससे धरती नष्ट हो जाये। इसके बावजूद लोगो को भगवान की प्राार्थना के लिये प्रेरित किया गया। बाज़ार और उसके प्रचार माध्यम लोगों को इस तरह के अंधविश्वास से दूर होने की सलाह देते रहे जो कि उनके उस व्यवसायिक कौशल का परिणाम था जिसमें एक फालतु खबर तैयार कर उस चर्चा या बहस प्रस्तुति के दौरान अपने विज्ञापनों के लिये विषय सामग्री जुटाई जाती है।
     इस धरती पर अक्सर कुछ ऐसे लोग प्रकट होते हैं जो इसक नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं। तारीखें बताते हैं पर उस दिन कुछ नहीं हेाता। इन भविष्यवाणियों में हमेशा ही अंतरिक्ष से आपदा प्रकट होने का संकेत होता है क्योंकि धरती की आपदाओं से मनुष्य जाति पूरी तरह विलुप्त होने का अंदेशा नहंी होता न ही वह प्रलय की परिधि में आती हैं। जहां तक धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं की बात है तो वह तो आती रहती हैं क्योकि वह स्वयं ही उसका कारण बनती है। इस संसार में सांस लेने वाले लोग अपने जीवन में अनेक आपदाओं को झेल चुके होते हैं या फिर स्वयं दूसरी जगह देखकर भूल जाते हैं।
     यह संयोग ही है कि पश्चिम में रहने वाले एक फ्लाप ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की। वह पहले ही एक ऐसी भविष्यवाणी कर चुका था जो प्रकट नहीं हुई इसकेे बावजूद भारतीय प्रचार माध्यम उसकी सनसनी को भुनाते रहे। दरअसल भारत में मई का महीना संकट का ही होता है। सूर्यनारायण सीधी आंखों से भारत की तरफ ताकते हुए ऐसे लगते हैं जैसे कि नाराज हों। वायुदेवता उनके अनुयायी होने की वजह से आग साथ लेकर निकलते हैं। जलदेवता सिकुड़ने लगते हैं जैसे कि विश्राम कर रहे हों। ऐसे में मनुष्य, पशु, पक्षी और जलवायु का प्रभावित होना स्वाभाविक है। एक दूसरी मुश्किल भी है कि इसी महीने में आंधी अक्सर चलती है। जमीन सूखी होने क कारण धूल इस कदर उठती है कि राहों पर चलना कठिन हो जाता है। यह संयोग ही है कि 21 मई 2011 को हमारे देश में विकट आधंी आई। ऐसी आंधी ने उत्तर भारत के अनेक शहरों का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया। जमकर बरसात भी हुई। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि आंधी कहीं अपने वेग से सीमेंट, ईंट और लोहे से बने मकान न पास में दबाकर चली जाये।
     ऐसे अवसर पर लोगों को 21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी याद आई। आंधी, बरसात और अंधेरे से जूझ चुके लोग जब सुबह आपस में मिले तो प्रलय के दिन की भविष्यवाणी को याद कर रहे थे। एक ने हमसे कहा कि ‘ः21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी सही निकली।
     हमने कहा कि ‘क्या हम स्वर्ग या नरक में मिल रहे हैं।’
     वह बोले-‘क्या मतलब?
     हमने कहा कि -‘प्रलय का मतलब होता है कि धरती पर जीवन का नष्ट होना। जहां तक हमारी जानकारी है उस समय धरती जलमग्न हो जाती है। जीवन की जगह जल अपना शासन करता है। अगर हम मान लें कि प्रलय की भविष्यवाणी सत्य हुई है तो इसका मतलब यह है कि हम धरती से लापता होकर कहीं दूसरी जगह मिल रहे हैं। वह दूसरी जगह स्वर्ग या नरक ही हो सकती है। जहां तक हमारे ज्ञान चक्षु देखते और कर्ण सुनते हैं वहां तक धरती के बाद यह दो ही स्थान है। जहां मनुष्य आता जाता है।
वह बोले-‘इसका मतलब तो हम नरक में मिल रहे हैं। देखो, हमारे घर की बिजली सारी रात गुल रही। बरसात की वजह से हमारी छत के एक भाग में छेद होने के कारण वहां से पानी टपकता रहा। सुबह पानी नहीं भरा। भरी दोपहर में कूलर की बात तो दूर पंखे की हवा तक नसीब नहीं हुई। हमारे लिये तो प्रलय जैसा समय था।’’
हमने कहा-‘पल में प्रलय होती है पर वह पल की नहीं होती बल्कि वह धरती से जीवन को ही समेट कर अपनी भूख शांत करती है। यह तो संकट आते जाते हैं इनसे क्या घबड़ाना?’’
        वह बोले-‘वह तो समेट कर ही चली जाती । गनीमत है कि हम सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते रहे। उन्होंने हमारी सुन ली तो बच गये। हमारी आस्था में बहुत शक्ति है जिसके कारण हम बच गये।’’
हमने हंसकर कहा-‘‘यहां आकर हमारे ज्ञानचक्षु अपना काम बंद कर देते हैं। आप कह रहे हैं कि आपकी आस्था में शक्ति है तो यकीनन होगी। हम तो यह कह रहे हैं कि आपकी आस्था में महान शक्ति है जो आप स्वयं ही नहीं सारा संसार बच गया।’’
      आज तक अनेक लोग आस्था और अंधविश्वास में अंतर नहीं कर पाये। यही कारण है कि ज्योतिष और भविष्यवाणी के आधार पर कोई भी बयान देकर अपना नाम कर लेता है। कभी कभी तो लगता है कि संसार में प्रलय की बात सुनकर लोग दुःखी कम खुश अधिक होते हैं। कम से कम अपने देश में तो यही लगता है। हमारे देश में अध्यात्मिक ज्ञान का विशाल भंडार है। यही कारण है कि हमारे लोग जानते हैं कि यहां आदमी अकेला आता और जाता है। लोग इस सच से इतना घबड़ाते हैं कि अपनी देह के नश्वर होने की बात को भुलाये ही रहते हैं। लोग इस बात को जानते हैं कि मृत्यु अवश्यंभावी है। अपनी मृत्यु के भय से सभी सहमे रहते है क्योंकि वह अकेला ही ले जाती है और सारा संसार यहीं धरा रहा जाता है। बस यहीं आकर हमारे देश के लोग त्रस्त हो जाते हैं कि उनके साथ कुछ नहीं जाता। हर कोई संसार का सुख अकेले भोगना चाहता है पर इससे भी किसी को खुशी नहीं होती। असली खुशी लोगों को तब मिलती है जब दूसरा के कष्ट हो। अपने पास किसी वस्तु होने का सुख तभी लोगों को मिलता है जब दूसरे के पास व न हो। लोगों की मनोवृत्ति यह है कि अगर अपनी एक आंख फूटने की कीमत पर दूसरे की दोनों फूटती हैं तो वह तैयार हो जाते हैं। प्रलय की बात उनको प्रसन्नता देती है क्योंकि यह संसार ही उनके साथ नष्ट होने वाला होता है। मतलब वह संसार के उन अंतिम लोगों में शामिल होना चाहते हैं जिनके भोग विलास के बाद यहां कुछ भी शेष नहीं रह जाता। उनको यह खुशी होती है कि यह संसार उनके बाद नहीं रहेगा। अपना अकेले जाना नहीं होगा बल्कि संगीसाथी भी साथ ही चलेंगे। इसलिये प्रलय के दिन को अपने सामने साकार होते देखना उनको सुखद अनुभूति हो सकता है।
        यही कारण है कि प्रलय की सनसनी भारत में बिकना कोई बड़ी बात नहीं है। सच बात तो यह है कि बाज़ार के सौदागर इस समय सारे संसार में दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे हैं। वह चाहते हैं कि दुनियां के सारे आम मनुष्य फालतु की बातों में व्यस्त रहे। कहीं मनोरंजन तो कहीं सनसनी फैलाने के लिये फैलाने के लिये बकायत प्रायोजित साधनों का-यथा टीवी, फिल्म, समाचार पत्र पत्रिकायें तथा रेडियो-निर्माण किया गया है।
     कुछ लोगों ने प्रचार माध्यमों में सवाल किया था कि आखिर प्रलय के दिन का प्रचार करने वालों को पोस्टर आदि के लिये पैसा किसने दिया था। यह प्रश्न हमारे ब्लागों से उठायी गयी विचाराधारा से उपजा है। आतंकवाद को हमने ही अपने ब्लाग पर एक व्यापार कहा था। कुछ बुद्धिमान लोग अब उसे पढ़कर कह रहे हैं। पैसे के खेल में भीे कमीशन का खेल सभी जगह है। प्रलय के दिन के प्रचारकों को पैसा इसलिये ही मिला होगा कि दस पंद्रह दिन तक लोगों को व्यस्त रखो। इस पर भारत में मई का महीना तो वैसे ही प्रलय का छोटा भाई लगता है सो सनसनी तो फैलनी थी। बहरहाल अब कुछ दिन में बरसात का आगमन भी होना है। उस समय भी बाढ़ आदि का प्रकोप रहता है। ऐसे में अगर किसी को नाम करना हो तो वह जून जुलाई अगरस्त और सितंबर में कोई दिन प्रलय का घोषित कर सकता है। बाज़ार में वह भी बिक जायेगा।
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
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Tuesday, May 17, 2011

अपने बदन उघाड़ डाले-हिन्दी व्यंग्य कविता (apane badan ughad dale-hindi vyangya kavita)

महल बनाने के लिये
उन्होंने कई घर उजाड़ डाले,
पैसा उनका भगवान है
उसकी बंदगी करते हुए
कई बंदों के घर उन्होंने उजाड़ डाले,
खौफ उनके पैसे का है
उनके खरीदे हथियारबंदों ने
दया के मंदिर ही उखाड़ डाले।

फिर भी नहीं की
अक्लमंदों ने भगवान मानकर
उनकी बंदगी
तो उन्होंने फरिश्ते का भेष उतारकर
शैतान की तरह डराने के लिये
ज़माने के सामने
अपने बदन उघाड़ डाले।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
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Saturday, May 14, 2011

शास्त्रों के अध्ययन से गूढ ज्ञान की प्राप्ति होती है-हिन्दू धर्म विचार

        इस संसार में भांति भांति प्रकार के लोग हैं, जिनमें कुछ तो मन की शुद्धता के लिए धर्म कर्म करते हैं तो कुछ दिखावा करते हैं।  कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से भक्ति   तथा यज्ञ करते नहीं दिखते हैं और न ही भक्त होने का पाखंड रचते हैं जबकि समाज में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो धर्म के नाम पर कर्मकांड अथवा यज्ञ करने के लिये दबाव बनाते हैं। अनेक लोग बिना किसी दिखावे के सात्विक जीवन जीते हैं पर चूंकि वह हवन तथा यज्ञ आदि नहीं करते तो लोग उनको नास्तिक होने का ताना देते हैं। सच बात तो यह है कि यज्ञ तथा हवन आदि करने से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य हृदय में तत्व ज्ञान धारण करे। इसके लिये प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। नियमित अध्ययन करने से जिज्ञासा बढ़ती है और अभ्यास से तत्वज्ञान का अनुभव हो जाता है।
              इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
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             यथायथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति।
              तथातथा विज्ञानाति विज्ञानं चास्य रोचते।।
            ‘‘जैसे जैसे कोई व्यक्ति शास्त्र का अभ्यास करता है वैसे ही उसे गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है और उसकी प्रवृत्ति और जिज्ञासा ज्ञान विज्ञान में बढ़ती जाती है।’’
              एक बात निश्चित है कि हमारे पुराने ग्रंथों में ज्ञान के साथ विज्ञान भी अंतर्निहित है। कुछ लोग आज विज्ञान के युग में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को हेय मानते हैं पर उनको यह पता ही नहीं कि विज्ञान का आधार भी तत्वज्ञान है जिसके कारण हमारे प्राचीन अध्यात्मिक ग्रंथ विज्ञान के विषय में सामग्री से परिपूर्ण हैं।
कुछ लोग मंदिर न जाने या यज्ञों तथा हवनों में सक्रिय भागीदारी न करने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हैं पर यह उनका ही अज्ञान है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
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‘‘शास्त्रों के ज्ञाता कुछ गृहस्थ यज्ञादि नहीं करते पर अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपनी अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करते हैं। उनके लिये लिये नाक, जीभ, त्वचा, तथा कान पर संयम रखना ही एक तरह से महायज्ञ है।
                सच बात तो यह है कि धर्म तभी ही प्रशंसनीय है जब वह आचरण तथा कर्म में दृष्टिगोचर हो न कि केवल कर्मकांड और दिखावे में। कुछ लोग जो प्रतिदिन मंदिर जाते हैं वह दूसरों को अभक्त समझते हैं जो कि उनके अज्ञान का प्रमाण है। इतना ही नहीं कुछ तो लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन पूजा आदि करते हैं पर व्यवहार में ऐसा अहंकार दिखाते हैं जैसे कि वही भगवान के इकलौते भक्त हों। जो वास्तव में भक्त और ज्ञानी हैं वह दिखावे से अधिक आत्मनियंत्रण तथा आचरण से उसे प्रमाणित करते हैं।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
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Tuesday, May 3, 2011

ओसामा बिन लादेन की मौत पर रहस्य बना ही रहेगा-हिन्दी लेख (suspesn on death of osama bin laden-hindi lekh or article)

                       ओसामा बिन लादेन अब इस धरती पर नहीं है यह बात तय है। विवाद इस बात पर है कि वह कब और कहां मरा? अमेरिकी स्वयं ही मामले को संदेहास्पद बना रहे हैं। उनकी कुछ बातें दिलचस्प है।

पाकिस्तान को कार्यवाही का नहीं पता
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                             अमेरिकन रणनीतिकारों का सबसे बड़ा झूठ यह कि पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य कार्यवाही का पता नहीं था। एक सैनिक की मौत पर ही  डरने वाला अमेरिका इतना बड़ा जोखिम नहीं ले सकता था। उसकी सेना अपने हेलीकॉप्टर उस पाकिस्तान में उतारने वाली थी जहां आतंकवादियों के पास भी विमान गिराने वाली मिसाइलें रहती हैं। यह संभव नहीं है कि इतने सारे हेलीकॉप्टर बाहर से उड़ कर आये और पाकिस्तानी सेना में किसी के पास जानकारी न हो। सभी अधिकारियों को नहीं तो अमेरिका के खास अधिकारियो को इसकी जानकारी होगी। दरअसल अमेरिका पाकिस्तान को बचा रहा है ताकि वह अपने ही धर्मबंधु देशों की नाराजगी का शिकार न हो। दूसरी बात यह कि वह ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोपों से भी पाक रणनीतिकारों का बचा रहा है।
केवल बच्चा गवाह बन रहा है
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                  पाकिस्तान के एक बच्चे के अलावा कोई दूसरा गवाह नहीं है यह बताने वाला कि मरने वाला ओसामा बिन लादेन ही था। लादेन की लाश किसी ने नहीं देखी। कोई मरा वह कोई भी हो सकता था। बच्चा सारी बात बता रहा है पर वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उपहार में दो खरगोश देन वाला बिन लादेन ही था। कोई बड़ा गवाह न मिलना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।
परिवार को लेकर विरोधी बयान
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                             एक तरफ अमेरिका दावा कर रहा है कि इस हमले में बिन लादेन की एक पत्नी मारी गयी तो दो पकड़ी गयीं। इधर पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन का परिवार उसके पास सुरक्षित है। सवाल यह है कि उसकी पत्नियों को प्रचारक लोग सामने क्यों नहीं ला रहे। पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन के परिवार को उसके देश भेज दिया जायेगा। अगर लादेन को समुद्र में दफनाया गया तो उसके परिवार के लोगों को क्या वहां ले जाया गया? अगर नहीं तो क्यों?
यहां यह बात याद रखने लायक है कि मरने वाला लादेन ही था इसकी पुष्टि उसके परिवार के वही सदस्य ही कर सकते हैं जो इस हमले में समय उसके पास थे। अब सवाल यह है कि उनमें से कोई क्या कभी प्रचार माध्यमों के पास आकर बतायेगा कि वह लादेन ही था?
फिक्सिंग के लिये बदनाम है पाकिस्तान
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                      लादेन को गोली या बम से ही मरना था। जिस मार्ग पर वह चला वही सामने से आती गोली या ऊपर से गिरने वाले बम के साथ ही बंद हो जाता है। यह सच है। अमेरिका लादेन को मारने के इतने प्रयास कर चुका है कि उसके सेना की गज़ब की क्षमता और अचूक निशाने देखकर लगता है कि वह कई बार मरा होगा। एबटाबाद में उसका मरना कोई बड़ी बात नहीं है। पाकिस्तान हमेशा ही उसका खैरख्वाह रहा है। मगर जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तानी रणनीतिकार ओसामा बिन लादेन की औपचारिक मौत के बाद जिस तरह नाटकबाजी कर रहे हैं उससे फिक्सिंग का शक होता है। वैसे भी पाकिस्तान की क्रिकेट टीम फिक्ंिसग के लिये बदनाम हैं। पाकिस्तान की टीम के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा ही हारना फिक्स करती है उसी तरह पाकिस्तान के रणनीतिकार भी अमेरिका से अपना पिटना फिक्स करते हैं। यह अलग बात है कि बाद में अमेरिका उनके घावों पर मरहम लगाता है। फिर पैसे की भी मदद करता है। ऐसे में यह संभव नहीं है कि पाकिस्तानी रणनीतिकार अपने आका की बात का किसी तरह प्रतिवाद करें।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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