tag:blogger.com,1999:blog-3211385411126189652.post8818959042339351660..comments2023-10-01T15:26:11.401+05:30Comments on दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका: गिरेबां में झांकने की कोशिश-आलेख(gireban men jhankne ki koshish-hindi alekh)दीपक भारतदीपhttp://www.blogger.com/profile/06331176241165302969noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3211385411126189652.post-50136653861221035282009-06-01T23:20:57.375+05:302009-06-01T23:20:57.375+05:30एक सही समझ रखी है आपने.
आपने जिस प्रवंचना को निशान...एक सही समझ रखी है आपने.<br />आपने जिस प्रवंचना को निशाना बनाया है उसी को आगे बढाया जा सकता है कि बहुसंख्यक मानसिकता अपने यहां के अल्पसंख्यकों से पेश आते हुए अलग रुख अपनाती है, और जहां वे खुद अल्पसंख्यक होते है वहां के लिए अलग रुख. अजीब दोगलापन होता है.<br />शुक्रिया आपका.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.com