पदे पर आने के लिये सजना जरूरी है, वक्ता को किराये पर बजना जरूरी है।
‘दीपकबापू’ आस्थावान घर में करें भक्ति, बाज़ार में पाखंड का सजना जरूरी है।।
--
सभी लोग भूखे मगर भाव छिपाते हैं, परस्पर त्याग का संदेश टिपाते हैं।
‘दीपकबापू’ दालरोटी से खुश नहीं होते, नमकमिर्ची लगाकर गम छिपाते हैं।।
--
सुरों के राज में भी असुरों के मजे हैं, काले कारनामे पर धवल छवि से सजे हैंं।
‘दीपकबापू’ दबंग हाथ में दबा दिये बेबस, दौलतमंदों के लिये प्रचार ढोल बजे हैं।।
----
यह जिंदगी भूख की रोटी के लिये जंग है, कहीं सूखी मिले कहीं घी के संग है।
‘दीपकबापू’ संसार के अलग अलग रूप देखें, खुशी उदासी का भी अलग रंग है।।
--
कागज की लकीर पर चलने वाले शेर हैं, खाते पीते दिखने वाले फकीर ढेर हैं।
‘दीपकबापू’ त्यागियों के निवास बने महल, श्रमवीरों के हिस्से अब भी झूठे बेर हैं।।
---
एक पल खुशी दूसरे पल आता गम, घड़ी चलती पर कभी कांटा भी जाता थम।
‘दीपकबापू’ दौलत से चमका लिया चेहरा, शौहरत मिलती न हो चाहे बाजू में दम।।
---