बैंक और एटीएम पर लाईनों में देश नहीं सिमटा है। हां, अगर दर्द दिखाने का प्रचार करना है तो यह दोनों अगले पचास दिल तक सही जगह रहेंगी। शादियों की बात करें तो दुल्हनें भारत की हैं तो दूल्हे तथा उनके परिवार वाले भी यहीं के हैं। दूल्हे वाले चुपचाप दुल्हनवालों के यहां जाकर सादगी से शादी की बात कर लें। नहीं तो दुल्हन वाले हम जैसे स्वतंत्र अर्थशास्त्री की बात भी सुने। शादी को लेकर नकदी के अभाव पर रोने से कोई लाभ नहीं है। अभी दूल्हे वालों से बात कर लो कि लेनदेन सामान्य स्थिति पर कर लेंगे। अभी हो तो भी मत खर्च करो। यह जो नोट बंद करने का जो निर्णय है यह मामूली नहीं होता। इस कदम से अर्थव्यवस्था में भारी उलटपलट की संभावना होती है। इसमें संभव है आज जो लड़का तथा उसका परिवार स्थापित दिख रहा है कल वह सड़क पर आ जाये और जो लड़खड़ाता दिख रहा है वह चमक जाये। सो पैसे के लेनदेन में पैसा हो या नहीं ‘देखो और प्रतीक्षा करो’ की नीति अपनाओ। पैसे की कमी का रोना रोकर समाज से सहानुभूति बटोरने की बजाय अपनी अक्ल की आंखें खोलो। फिलहाल तो यही मानकर चलो कि लड़की ही बड़ा धन है। पैसे के मामले में पक्के रहो क्योंकि अपनी ही जायी उस लड़की के लिये वह भविष्य में काम आ सकता है। लड़के वाले शादी तोड़ने के लिये तत्पर हों तो पहल स्वयं ही कर लेना क्योंकि उनका स्थिर परिवार भी माया की आंधी में डांवाडोल हो सकता है।
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कालेधन पर सर्जीकल स्ट्राइक के बाद पहली बार आज हमने आखिर एटीएम से एक हजार रुपया निकाल ही लिया। मोदी जी को चिंता नहीं करना चाहिये उनके स्थाई भक्त भी अब सामान्य स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। मन में कोई तनाव न रखें बल्कि आक्रामक रहें वरना कालेधन वाले इधर उधर घूमकर दुष्प्रचार करते ही रहेंगे। मौका मिले तो कालेधन के समंदर से एक दो बड़ा मगरमच्छ धर ही लें ताकि प्रचार माध्यमों का ध्यान उस तरफ चला जाये।
जे कौन अर्थशास्त्री हैं जो कह रहे हैं कि नोटबंदी से कालेधन पर रोक नहीं लगेगी। यह तो हम भी कह रहे हैं पर दरअसल इससे कालाधन सड़ जायेगा जिससे समाज में स्थिरता आयेगी। वैसे हम सात दिनों में लगातार बैंक या एटीएम में जाने की बजाय लोगों से संपर्क में आये हैं। लोग इस बात से दुःखी नहीं है कि उनके पास खर्च लायक पैसे कम हैं वह ज्यादा खुश इस पर हैं कि उनके अपनों का कालाधन सड़ गया जो मकड़ाते थे। जे वाले कथित अर्थशास्त्री देश के बड़े पदों पर रहे हैं इन्हीं के कार्यकाल में भारतीय मुद्रा अपमानजनक स्थिति में आयी है। ऐसे लोग चुप बैठे तो बहुत अच्छा लगे। बोलते हैें तो लगता है कि इनको इतने बड़े पदों पर लाया कौन?
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बैंकों और एटीएमों पर घूमने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लाईन में लगे बहुत सारे लोग जरूरतमंद हैं पर सभी नहीं है। दूसरा अब एटीएम पर पैसे निकलना शुरु हो गये हैं। इसलिये मुद्रा की कमी का रोना अब कम होना चाहिये। कालाधन वाले अब इन्हीं लाईनों में अपना खेल करने का प्रयास भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं जैसे ही कुछ लोगों को लगेगा कि जनता अब संतुष्ट हो रही है वह इन्हीं लाईनोें में घुसकर असंतोष भड़काने की कोशिश कर सकते हैं। राष्ट्रवादी भक्तों को यह बता दें कि आने वाले समय में प्रचार माध्यम भी अपना लक्ष्य बदल सकते हैं क्योंकि अभी तक मोदी समर्थक जरूरतमंदों की भीड़ थी इसलिये कोई कुछ नहीं कर सकता पर जैसे ही वह कम होगी विरोधी खेल दिखाने आ सकते हैं।
कोई बतायेगा कि दिल्ली में नोटबंदी के बाद प्रदूषण कम हुआ कि नहीं। अगर कम हुआ है तो.....इसे नोटबंदी का परिणाम माना जायेगा।
हरिओम! ओम तत् सत्।
आज सभी का दिन अच्छा निकले। सभी को नयी मुद्रा मिले। पुरानी और नकली से पीछा छूटे।
मुंबईया में हफ्ता वसूली पर चलने वालों को यह खुशफहमी हो गयी है कि देश कि 125 करोड़ जनता उनकी गुलाम है जो उनके कहने से सड़कों पर आ जायेगी। कालेधन पर प्रहार से उनके हाथी जैसे गुर्गे चूहे बन गये हैं। उन्हें ही साथ रख पाओ यही बहुत है।
वह मूर्ख कह रहे हैं वह भेड़िया कह रहे हैं पर यह नहीं बताते कि राजपदों पर रहते हुए उन्होंने कौनसे तीर मार लिये थे?
नोटबंदी से ज्यादा कालाधन नहीं भी निकलेगा तो क्या जाली मुद्रा से छुटकारा तो मिलेगा।