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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, May 8, 2019

--- विचारों का युद्ध है कहते रहिये-दीपकबापूवाणी (vicharon ka yudh hain kahate rahiye-DeepakbapuWani)

सब जगह मेला है लगा,
मगर इंसान अकेला  कोई ना है सगा।
कहें दीपकबापू डरे है सब
संग भीड़ में साथ होने का दगा है।
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मन में माया मुंह में राम,
भक्ति में ढूंढ रहे फल दाम।
कहें दीपकबापू पाखंड की चमक है
दे रहे उसे संस्कार नाम।
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पानी की तरह पैसा पाया,
तिजोरी को बांध बनाया।
‘दीपकबापू’ मद तो आना ही था
सुख की चिंता हुई बाज़ार में बहाया।।
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अपने में सब आशा जगाते हैं,
यहां तो अजनबी भी निभाते हैं।
कहें दीपकबापू चाहत के बाज़ार में
रिश्तों के भाव भी लगाते हैं।
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लोकतंत्र के मुख पर नारे जड़े हैं,
जिनके जितने महंगे उतने बड़े हैं।
कहें दीपक बापू हम आदमी
अब भी भगवान भरोसे खड़े हैं।
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गर्मी में तख्त की जंग लड़े हैं,
वाणी में अग्निबाण पड़े हैं।
कहें दीपकबापू ताप में मरती मति
जलाभुना दिखने पर सब अड़े हैं।
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जब चेहरे पर बने झुर्रियों का घर
आईना देखने से लगता है डर।
जिंदगी में मजे लेने का एक तरीका
‘दीपकबापू’ दिल में उमंग भर।।

सुविधाओं के भंडार लगे हैं,
हर देह में राजरोग जगे हैं।
कहें दीपकबापू लाचारी के शिकार
साथ देने का वादा कर ठगे हैं।
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रूठे यारों को कब तक मनायें,
दिल के घाव कब तक सहलायें।
‘दीपकबापू’ आओ चलें बाहर
कहीं नया चमन बसायें।
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विचारों का युद्ध है कहते रहिये,
स्वयं बोलें तो अभद्र शब्द भी सहिये।
कहें दीपकबापू मजा लेना आये तो
अपनी मस्त धारा में बहिये।
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Thursday, July 5, 2018

दूसरे की फिक्र से कमाते हैं-दीपकबापूवाणी (Doosre ki Fikra se kamate hain-DeepakBapuWani)


बेकारी के जो सताये हैं,
राजमार्ग पर चले आये हैं।
‘दीपकबापू’ दिल बहला लेते
वादों का पिटारा जो वह लाये हैं।
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वादों के व्यापारी हमदर्द वेश धरेंगे,
धोखे से अपने घर भरेंगे।
कहें दीपकबापू लाचार और लालची
इंसान ठगी पर यूं ही मौन करेंगे।
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दूसरे की फिक्र से कमाते हैं,
हमदर्दी की दुकान जमाते हैं।
कहें दीपकबापू अंग्रेजी के गुलाम
हिन्दी में साहब बन जाते हैं।
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जिंदगी में दर्द होना है जरूरी,
हर रस पीना दिल की है मजबूरी।
कहें दीपकबापू डर लगता
जब सोच से हो जाती चिंता की दूरी।
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सिंहासन मिलते ही नया चेहरा लगा,
मित्र छोड़े घर पर पहरा लगा।
कहें दीपकबापू वीर हुए कायर
महल में छिपे राज गहरा जगा।
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सर्वांग संपन्न फिर भी बेबस बनते,
धन मद में सीने भी तनते।
कहें दीपकबापू भ्रष्ट राह मिले
चलें फिर तन मन से उफनते।
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Sunday, April 15, 2018

चौराहों पर वफादारी की दुकानें सजी हैं-दीपकबापूवाणी (Chaurahon par Vafadari ki Dukan-DeepakBapuWani)

सजे कक्ष में बैठे काजू के साथ जाम पीते, मजा लेकर सवाल पूछें गरीब कैसे जीते।
‘दीपकबापू’ अंग्रेजी से न शिक्षित रहे न गंवार, फ टे अर्थतंत्र में भ्रष्टाचार के पैबंद सीते।।
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माया के बंधक इंसानों पर भरोसा न करें, बेवफाई और दगा पर किसे कोसा न करें।
‘दीपकबापू’ फरिश्ते का मुखौट पहनते हैं, कहें अपने मन में शैतान पालापोसा न करें।।
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चौराहों पर वफादारी की दुकानें सजी हैं, दागदारों के घर चैर की बंसियां बजी हैं।
‘दीपकबापू’ अपने कंधे बनाते किसी की सीढ़िया, लात पड़ने से जमीन पर सजी हैं।।
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राम का नाम जपते ओटने लगे कपास, ऐसे भक्तों से क्या करें अपने भले की आस।
‘दीपकबापू’ जमा करते रहे बरसों ईंट पत्थर, ऊंची दीवारों के बीच बनाया अपना वास।।
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Sunday, April 1, 2018

दर पर जज़्बात के सौदागर आ ही जाते हैं-दीपकबापूवाणी jazbaat ke saudagar ghar aahi jate hain-DeepakapuWani)

जैसा मंजर सामने वैसा दिल होता,
इश्क देख मचले कत्ल से रोता।
कहें दीपकबापू रसों का स्वाद जानो
लगाओ हास्य रस में गोता।
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काम करो ढेर सवाल उठते हैं,
नाकामी पर बवाल उठते हैं।
कहें दीपकबापू चादर ढंककर सोयें
लालची लोग लोभ में लुटते हैं।
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बाज़ार नये नये सामाज से सजे हैं,
उधार पैसा ले लो मजे ही मजे हैं।
कहें दीपकबापू कर्ज में डूबी सोच
हाथ में मोबाईल पूछें कितने बजे हैं।
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अपने रास्ते चलना भी नहीं है तय,
आगे पीछे चलता हादसे का भय।
कहें दीपकबापू जमाना बदहवास
धूमिल चरित्र  टूटी चाल की लय।
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हम न कभी उनसे पैसा मांगें न प्यार,
फिर भी दर पर जज़्बात के सौदागर आ ही जाते हैं।
न गुलाब न कमल उनके पास
सुगंध के वादे साथ लाते हैं।
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उपाधि बड़ी पर प्रतिभा पर शक है,
नकल से भी जो मिल रहा हक है।
कहें दीपकबापू अंग्रेजी पढ़े बेकार
उनकी दौड़ केवल नौकरी तक है।
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भ्रष्टाचार पर इतना ही झगड़ा हैं,
आपस में हिस्सा बांटने मुद्दा तगड़ा है।
कहें दीपकबापू वह ईमानदार दिखे
जिसने अकेले नियम को रगड़ा है।
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मत पूछना हिसाब में बच्चे हैं,
नारों के खिलाड़ी अंकों में कच्चे हैं।
कहें दीपकबापू डंडे थामे हैं वह
डर के बोलें सभी आप सच्चे हैं।
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Thursday, January 18, 2018

जनतंत्र में तख्त की जंग है जारी-दीपकबापूवाणी (Jnatantra mein takhta ki jung jari hai-DeepakBapuWani)

पत्थरों के शहरों में
जज़्बातों के मेले लगे हैं।
गले से गले भी मिलते
पर दिल से नहीं सगे हैं।
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रंगों से मन खाली
सभी चेहरा चमका रहे हैं।
सुरक्षित गुफा में बैठे कायर
धूप के वीरों का धमका रहे हैं।
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कामयाबी चाहते बढ़ा देती है,
दौलत भी चिंता चढ़ा देती है।
‘दीपकबापू’ महलों में बस गये जब
आशंका डर का पाठ पढ़ा देती है।
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जनतंत्र में तख्त की जंग है जारी
हर रोज नये मुखौटे की है बारी।
दीपकबापू भ्रष्टाचार विरोधी नहीं
बहस केवल बंटवारे की है सारी।
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चंदन के पेड़ से सांप लिपटे हैं,
राजप्रसाद ठगों के झुंड से पटे हैं।
‘दीपकबापू’ झूठ में लगे सोने के पांव
बेईमान सस्ते में ही निपटे हैं।
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दुश्मन को बाहर बुला लेते,
घर को डराकर सुला देते।
‘दीपकबापू’ किताब महंगी हुईं
ज्ञानी रूप धर सीना फुला देते।
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Saturday, September 30, 2017

सुरों के राज में भी असुरों के मजे हैं-दीपकबापूवाणी (suron ke raj mein bhee asuron ke maze hain-DeepakBapuwani)


पदे पर आने के लिये सजना जरूरी है, वक्ता को किराये पर बजना जरूरी है।
‘दीपकबापू’ आस्थावान घर में करें भक्ति, बाज़ार में पाखंड का सजना जरूरी है।।
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सभी लोग भूखे मगर भाव छिपाते हैं, परस्पर त्याग का संदेश टिपाते हैं।
‘दीपकबापू’ दालरोटी से खुश नहीं होते, नमकमिर्ची लगाकर गम छिपाते हैं।।
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सुरों के राज में भी असुरों के मजे हैं, काले कारनामे पर धवल छवि से सजे हैंं।
‘दीपकबापू’ दबंग हाथ में दबा दिये बेबस, दौलतमंदों के लिये प्रचार ढोल बजे हैं।।
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यह जिंदगी भूख की रोटी के लिये जंग है, कहीं सूखी मिले कहीं घी के संग है।
‘दीपकबापू’ संसार के अलग अलग रूप देखें, खुशी उदासी का भी अलग रंग है।।
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कागज की लकीर पर चलने वाले शेर हैं, खाते पीते दिखने वाले फकीर ढेर हैं।
‘दीपकबापू’ त्यागियों के निवास बने महल, श्रमवीरों के हिस्से अब भी झूठे बेर हैं।।
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एक पल खुशी दूसरे पल आता गम, घड़ी चलती पर कभी कांटा भी जाता थम।
‘दीपकबापू’ दौलत से चमका लिया चेहरा, शौहरत मिलती न हो चाहे बाजू में दम।।
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Tuesday, September 19, 2017

सेवा करते सेवक से स्वामी हो गये श्रीमान्-दीपकबापूवाणी (Sewa karate Sewak se Swami ho Gaye Shriman-DeepakBapuWani)

तन्हाई से डर लगता है
इसलिये भीड़ में जाते हैं।
दीपक बापू मत पूछो किसी का दर्द
लोग उसे शर्म से छिपाते हैं।
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शब्द हो या चित्र बाज़ार में बिकते हैं,
अभद्रता ज्यादा हो तो ही टिकते हैं।
‘दीपकबापू’ हंसते रोने वालों पर
शुल्क लेकर आंसु भी लिखते हैं।
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बिठाया उनको अपने सिर आंखों पर,
उम्मीद थी लायेंगे खुशियां हमारे घर।
‘दीपकबापू’ खड़े सुन रहे उनका ज्ञान
विकास की चिंता से जुड़ा तबाही का डर।।
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यह हवा पानी रोज मिलते हैं,
सूरज चांद रौशनी के साथ खिलते हैं।
‘दीपकबापू’ अकेलेपन रोने वाले
भीड़ में सांस लेते हुए पिलते हैं।
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अपने चालचलन से स्वयं डरे हैं,
दिल में काली नीयत भी भरे हैं।
‘दीपकबापू’ किसी का हिसाब देखें नहीं,
सभी आंखो में मरी चेतना भरे हैं।
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जमीन पर गिरा मनोबल स्वयं उठाते,
दिल बहलाने का सामान भी जुटाते।
‘दीपकबापू’ देखते खड़े चौराहे पर
भीड़ में लोग अपने ही दर्द लुटाते।।
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सेवा करते सेवक से
स्वामी हो गये श्रीमान्।
‘दीपकबापू’ बेबसी बेचते हुए
बाहूबली हो गये श्रीमान्।।
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सपना छोड़कर सच साथ रखते 
सौदागर मन बांधकर नहीं ले जाता।
‘दीपकबापू’ पांव रखते धरती पर
कोई गिद्ध टांगकर नहीं ले जाता ।
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Friday, February 24, 2017

जनकल्याण का अनुबंध चुनकर देते हैं-दीपकबापूवाणी (JanKalyan ka anubandh chunkar dete hain-DeepakBapuWani)

प्रेम शब्द छोड़ लव की तरफ बढ़े हैं, हिन्दी की जगह अंग्रेजी के झंडे चढ़े हैं।
‘दीपकबापू’ अपने स्वर्णिम इतिहास से डरे, पराये भ्रम में स्नातक जो पढ़े हैं।।
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बिना ज्ञान के भी बोल जाते हैं, अर्थरहित शब्द हवा में डोल जाते हैं।
‘दीपकबापू’ बाज़ार में ढूंढते मनोरंजन, आंसू भी हंसी के मोल पाते हैं।।
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कचड़े के ढेर में फूल उगाने का वादा, कांटे का स्वर्ण बनाने का बेचें इरादा।
‘दीपकबापू’ रख लिया ज्ञान कनस्तर में, तर्कों से नारे महंगे हो गये ज्यादा।।
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विकास के स्तंभ वह लगाने चले हैं, जिनके घर चंदे से चिराग जले हैं।
आमआदमी लड़ते सदा अंधेरे से,‘दीपकबापू’ महल के बुत मुफ्त में पले है।।
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सबका भाग्य उनकी मुट्ठी में बंद है, यह भ्रम पाले मूर्ख भी चंद हैं।
‘दीपकबापू’ महलों में मिला घर, दुनियां की चिंता करें पर सोच मंद है।।
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नयी जिंदगी के सब तरीके सीखे हैं, जुबान के स्वाद मिर्च से तीखे हैं।
‘दीपकबापू’ जज़्बात की लाद अर्थी, पूछें इश्क के मिजाज क्यों फीके है।।
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अपने बंद बस्ते में कबाड़ रखते हैं, खाली मस्तिष्क पर चेहरा झाड़ रखते हैं।
‘दीपकबापू’ कड़वे शब्द से बांटे वीभत्स रस, स्वयं मिठास का पहाड़ चखते हैं।।
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महल में बैठे तलवार हिला रहे हैं, घोड़ों की घास गधों को खिला रहे हैं।
‘दीपकबापू’ स्वर्ण पिंजरे में कैद स्वयं, यायावरों को विकास विष पिला रहे हैं।।
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जनकल्याण का अनुबंध चुनकर देते हैं, धंधेबाजों को जाल बुनकर देते हैं।
‘दीपकबापू’ लाचारी के मारे हम, सपने देखने की बजाय सुनकर लेते हैं।।
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पत्थर दिल भी फूलों जैसी बात करते हैं, मौका मिलते ही भीतरघात करते हैं।
‘दीपकबापू’ मोहब्बत के बाग सड़ा दिये, कातिल अपना नाम आशिक धरते हैं।।
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Friday, January 27, 2017

धोखे की हांडी-हिन्दी व्यंग्य कविता (Dhokkhe ki Handi-HindiVyangyakavita

सामान से भरी बंद बोरी
सौदागर मूंह मांगे दाम
बेच जाते हैं।

सपनों के खरीददार
जेब खाली करते
खोलने पर कबाड़ पाते हैं।

कहें दीपकबापू आग पर
धोखे की हांडी चढ़ती देखी
हमने कई बार
वह रोज मालिक बदलती
हम कहां ताड़ पाते हैं।
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Tuesday, November 15, 2016

जाली नोटों से पीछा छूटा तो मुद्रा में विश्वास से देश का आत्मविश्वस बढ़ेगा-हिन्दी लेख (Nation Confidence boost After trut in Currency raise if would remove Fake Not-HindiArticle)

                                  बैंक और एटीएम पर लाईनों में देश नहीं सिमटा है। हां, अगर दर्द दिखाने का प्रचार करना है तो यह दोनों अगले पचास दिल तक सही जगह रहेंगी।  शादियों की बात करें तो दुल्हनें भारत की हैं तो दूल्हे तथा उनके परिवार वाले भी यहीं के हैं। दूल्हे वाले चुपचाप दुल्हनवालों के यहां जाकर सादगी से शादी की बात कर लें।  नहीं तो दुल्हन वाले हम जैसे स्वतंत्र अर्थशास्त्री की बात भी सुने। शादी को लेकर नकदी के अभाव पर रोने से कोई लाभ नहीं है।  अभी दूल्हे वालों से बात कर लो कि लेनदेन सामान्य स्थिति पर कर लेंगे। अभी हो तो भी मत खर्च करो।  यह जो नोट बंद करने का जो निर्णय है यह मामूली नहीं होता।  इस कदम से अर्थव्यवस्था में भारी उलटपलट की संभावना होती है।  इसमें संभव है आज जो लड़का तथा उसका परिवार स्थापित दिख रहा है कल वह सड़क पर आ जाये और जो लड़खड़ाता दिख रहा है वह चमक जाये। सो पैसे के लेनदेन में पैसा हो या नहीं ‘देखो और प्रतीक्षा करो’ की नीति अपनाओ।  पैसे की कमी का रोना रोकर समाज से सहानुभूति बटोरने की बजाय अपनी अक्ल की आंखें खोलो। फिलहाल तो यही मानकर चलो कि लड़की ही बड़ा धन है। पैसे के मामले में पक्के रहो क्योंकि अपनी ही जायी उस लड़की के लिये वह भविष्य में काम आ सकता है। लड़के वाले शादी तोड़ने के लिये तत्पर हों तो पहल स्वयं ही कर लेना क्योंकि उनका स्थिर परिवार भी माया की आंधी में डांवाडोल हो सकता है।
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                      कालेधन पर सर्जीकल स्ट्राइक के बाद पहली बार आज हमने आखिर एटीएम से एक हजार रुपया निकाल ही लिया।  मोदी जी को चिंता नहीं करना चाहिये उनके स्थाई भक्त भी अब सामान्य स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। मन में कोई तनाव न रखें बल्कि आक्रामक रहें वरना कालेधन वाले इधर उधर घूमकर दुष्प्रचार करते ही रहेंगे।  मौका मिले तो कालेधन के समंदर से एक दो बड़ा मगरमच्छ धर ही लें ताकि प्रचार माध्यमों का ध्यान उस तरफ चला जाये।
                         जे कौन अर्थशास्त्री हैं जो कह रहे हैं कि नोटबंदी से कालेधन पर रोक नहीं लगेगी। यह तो हम भी कह रहे हैं पर दरअसल इससे कालाधन सड़ जायेगा जिससे समाज में स्थिरता आयेगी।  वैसे हम सात दिनों में लगातार बैंक या एटीएम में जाने की बजाय लोगों  से संपर्क में आये हैं। लोग इस बात से दुःखी नहीं है कि उनके पास खर्च लायक पैसे कम हैं वह ज्यादा खुश इस पर हैं कि उनके अपनों का कालाधन सड़ गया जो मकड़ाते थे।  जे वाले कथित अर्थशास्त्री देश के बड़े पदों पर रहे हैं इन्हीं के कार्यकाल में भारतीय मुद्रा अपमानजनक स्थिति में आयी है।  ऐसे लोग चुप बैठे तो बहुत अच्छा लगे। बोलते हैें तो लगता है कि इनको इतने बड़े पदों पर लाया कौन?
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                 बैंकों और एटीएमों पर घूमने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लाईन में लगे बहुत सारे लोग जरूरतमंद हैं पर सभी नहीं है। दूसरा अब एटीएम पर पैसे निकलना शुरु हो गये हैं। इसलिये मुद्रा की कमी का रोना अब कम होना चाहिये।  कालाधन वाले अब इन्हीं लाईनों में अपना खेल करने का प्रयास भी कर सकते हैं।  इतना ही नहीं जैसे ही कुछ लोगों को लगेगा कि जनता अब संतुष्ट हो रही है वह इन्हीं लाईनोें में घुसकर असंतोष भड़काने की कोशिश कर सकते हैं। राष्ट्रवादी भक्तों को यह बता दें कि आने वाले समय में प्रचार माध्यम भी अपना लक्ष्य बदल सकते हैं क्योंकि अभी तक मोदी समर्थक जरूरतमंदों की भीड़ थी इसलिये कोई कुछ नहीं कर सकता पर जैसे ही वह कम होगी विरोधी खेल दिखाने आ सकते हैं।
कोई बतायेगा कि दिल्ली में नोटबंदी के बाद प्रदूषण कम हुआ कि नहीं। अगर कम हुआ है तो.....इसे नोटबंदी का परिणाम माना जायेगा।
हरिओम! ओम तत् सत्।
आज सभी का दिन अच्छा निकले। सभी को नयी मुद्रा मिले। पुरानी और नकली से पीछा छूटे। 
मुंबईया में हफ्ता वसूली पर चलने वालों को यह खुशफहमी हो गयी है कि देश कि 125 करोड़ जनता उनकी गुलाम है जो उनके कहने से सड़कों पर आ जायेगी। कालेधन पर प्रहार से उनके हाथी जैसे गुर्गे चूहे बन गये हैं। उन्हें ही साथ रख पाओ यही बहुत है।
वह मूर्ख कह रहे हैं वह भेड़िया कह रहे हैं पर यह नहीं बताते कि राजपदों पर रहते हुए उन्होंने कौनसे तीर मार लिये थे?
                        नोटबंदी से ज्यादा कालाधन नहीं भी निकलेगा तो क्या जाली मुद्रा से छुटकारा तो मिलेगा।

Thursday, October 27, 2016

मधुमेह का मरीज जब चाय के कप से चीनी हटाने की मांग करे-हिन्दीव्यंग्य (Than Dibeties Peciant Demand remuve chini from Tea Cup-Hindi Satire)


                                         आज चीनी उत्पाद के बहिष्कार की मांग या घोषणा करने वाले लोगों का एक जुलूस देखा। जिस तरह भारत में प्रयोग किये जाने वाले मोबाइल, कंप्यूटर तथा अन्य उत्पादों में चीनी सामान की घुसपैठ है उससे देखकर तो यह एक मजाक लगता है। यह ऐसे ही जैसे कोई मधुमेह से ग्रसित आदमी सामने कप में रखी चाय पीने के लिये उसमें से चीनी अलग करने की मांग करे।
                  हमने देखा है कि अनेक विलासिता के सामान चीन से आयातित हैं। यहां तक कि योग दिवस पर जिस चटाई का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया था वह भी चीन मेें बना था।  ऐसा लगता है कि इन सामानों के प्रयोग का बहिष्कार का आह्वान करने की किसी में हिम्मत नहीं है इसलिये दिपावली के अवसर पर छोटे और मध्यम व्यापारियों पर दबाव बनाया जा रहा है ताकि कथित देशभक्ति का प्रचार हो सके।  हमारा दावा है कि जो यह जूलूस निकाल रहे हैं वह अगर चीनी सामान का बहिष्कार अपने घर से शुरु करें तब पता चले। एक मिनट मोबाईल और टीवी के बिना रहा नहीं जाता चले हैं छोटे दुकानदारों के छोटे सामान पर हमला करने। चीनी सामान का भारत उपभोग रोकना एक बृहद योजना से ही हो सकता है इस तरह जुलूस निकालने का सीधा मतलब यह है कि छोटे और मध्यम व्यवसायियों पर दबाव बनाया जाये ताकि ग्राहक बड़े बड़े मॉलों में चला जाये। हम जानते हैं वहां खड़ी निजी सुरक्षा फौज देखकर ही उनका दम निकल जायेगा।
                           पिछले कुछ वर्षों से दीपावली पर्व के सार्वजनिक रूप से व्यक्त उत्साह में कमी आयी है। इसका मुख्य कारण मध्यमवर्ग परिवारों सदस्य संख्या सीमित होने के साथ ही आर्थिक संकट भी है। टीवी पर बहसों में अनेक अर्थशास्त्री अनेक बातें कहते हैं पर यह कोई नहीं कहता कि मध्यम वर्ग पर दबाव अधिक है जिसकी वजहा से इस देश में सामाजिक संकट भी पैदा हुआ है। इस वजह से चीनी सामान की बिक्री वैसे ही कम होगी पर कथित संगठन दावा यह करेंगे कि उनके प्रयासों से ही यह हुआ है।

Wednesday, October 12, 2016

रामजन्मभूमि आंदोलन में जब ‘जयश्रीराम’ का नारा राजनीतिक पहचान बना था-हिन्दी संपादकीय (Than 'Jay Shri Ram' Sloger was a Imege for Politcical-Hindi Editorial)

                                     जब देश में रामजन्मभूमि आंदोलन चल रहा था तब ‘जयश्रीराम’ नारे का जिस तरह चुनावी राजनीतिकरण हुआ उसकी अनेक मिसालें हैं।  स्थिति यह थी कि कहीं अगर कहीं ‘जयश्रीराम’ का नारा मन में आ गया तो उसे जुबान पर लाने का विचार यह सोचकर छोड़ना पड़ता था कि कोई किसी राजनीति दल या सामाजिक संगठन  का न समझ ले। सही समय तो याद नहीं पर इसके राजनीतिककरण का अहसास हमें अपने ही कार्यालय में 25 से 28 वर्ष पूर्व अपने ही कार्यालय में हुआ था।  तब राजन्मभूमिआंदोलन ने राष्ट्रवादी समूह को एक तरफ तो दूसरी तरफ उनका सामना प्रगतिशील और जनवादी विचाकर निरपेक्ष समूह बनाकर संयुक्त कर रहे थे।  मजदूर तथा श्रमिक सघों में भी ऐसी ही वैचारिक विभाजन की  स्थिति थी।  अध्यात्मिकवादी होने के कारण हमारी निकटता राष्ट्रवादियों से ज्यादा रही है। समय पर काम भी यही आते रहे  सो उनसे लगाव रहा है जो अब भी है।  उसी समय  चुनाव भी चल रहे थे तब निरपेक्ष समूह ने एक दल के बड़े नेता को अपने यहां सभा करने बुलाया था।  उन नेता के आने से पहले ही हमारे एक राष्ट्रवादी मित्र ने वहां ‘जयश्रीराम’ का नारा लगा दिया।  वह राष्ट्रवादी मित्र वैसे सम्मानीय थे पर वहां निरपेक्ष समूह के ही उनके स्वाजातीय साथी ने सभी में खलल डालने का आरोप लगाकर उन पर हमला कर दिया।
             नेताजी की सभा तो हो गयी पर उसके बाद कार्यालय में इस विवाद की चर्चा खूब रही।  तब हमें पता लगा कि ‘जयश्रीराम’ का नारा अब केवल राष्ट्रवादियों  के लिये पंजीकृत हो गया है।  इसलिये कहीं अगर किसी का अभिवादन करते समय ‘जय राम जी’ की या ‘जयसियाराम’ कहते थे। हमारे अनेक मित्र सेवानिवृत हो गये हैं। उनके से अनेक फेसबुक पर हमारे साथी बने हैं।  इनमें से अधिकतर राष्ट्रवादी विचाराधारा के हैं इसलिये उन्हें तब अपने साथी से सहानुभूति हुई थी।  अगर वह इस पाठ को पढ़ें तो अनुभव करें कि कल लखनऊ की रामलीला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जयश्रीराम’ का नारा लगाया तब निरपेक्ष समूह के हृदय पर छुरियां जैसी चल रही होंगी।  वैसे ही जैसे हमारे कार्यालय में आज से उस समय चली थी जब विवाद हुआ था।
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प्रधानमंत्री ने पहले भाषण में टेबल ठोकते हुए कहा था कि ‘हमारे देश के जवानों की कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी।’
उन्होंने उसी भाषण में कहा था कि पाकिस्तान मुकाबला करना चाहता है तो गरीबी और बेकारी हटाने मेें करे।
दूसरी बात का सभी ने मजाक उड़ाया पर पहली पर कोई नहीं बोला। दो दिन बाद ही जब पहली बात का नतीजा सामने आया तो सारा विश्व स्तब्ध रह गया।

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Sunday, September 25, 2016

देवताओं जैसे सुंदर वस्त्र पहने हैं, असुरों की माया के क्या कहने हैं-दीपकबापूवाणी (Devtaon Jaise Vastra pahane hain-DeepakBapuwani


महल में आकर आदमी फूल जाता, छोटे मकान का दर्द भूल जाता।
‘दीपकबापू’ न करें कभी शिकायत,  माया मद मे हर दिल झूल जाता।।
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अहंकारी को नम्रता क्या सिखायें, जड़ को कौनसा मार्ग दिखायें।
‘दीपकबापू’ स्वार्थ के कूंऐं में गिरे, नाम अपना परमार्थी लिखायें।।
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परायी पीड़ा के घाव सामने लाते, अपने ही दिल का दुुुुुुःख बताते।
‘दीपकबापू’ नहीं झांकते घर से बाहर, वाणी विलास में सुख जताते।।
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देवताओं जैसे सुंदर वस्त्र पहने हैं, असुरों की माया के क्या कहने हैं।
‘दीपकबापू’ किस किससे लड़ते रहें, मान लो भाग्य में दर्द भी सहने हैं।
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समझें नहीं इशारों में कही बात, अहंकार से करें स्वयं पर घात।
‘दीपकबापू’ नासमझों की यारी करते, चैन न पायें दिन हो या रात।।
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उनके लिये धूप में चले पर उन्होंने धन्यवाद नहीं दिया।
निहारतेे उनकी राह जिसका रुख उन्होंने फिर नहीं किया।।
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कितना अजीब है दिल कुछ सोचता जुबान कुछ और बोलती है।
कितने छिपायेगा कोई अपने राज आंखें भी नीयत खोलती हैं।
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चिंतायें बेचते महंगे दाम-हिन्दी कविता
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सोचते सभी
मगर कर नहीं पाते
भलाई का काम।

कहते सभी निंदा स्तुति
मगर कर नहीं पाते
बढ़ाई का काम।

कहे दीपकबापू चिंत्तन से
जी चुराते मिल जाते 
हर जगह लोग
चिंतायें बेचते महंगे दाम
करते लड़ाई का काम।
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Thursday, September 22, 2016

पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संघर्ष लंबा समय चलेगा- हिन्दीसंपादकीय (India-Pakistan war will longtime-Hindi Editoirial)

पिछले दिनो हमने यह समाचार देखा था कि भारतीय सेना ने सीमा पार कर आतंकवादी मारे। अभी एक फेसबुक पर भी पढ़ा कि दो दिन में भारतीय सेना दो बार सीमा पारकर आतंकवादियों को मारकर चली आयी। यह एक नयी रणनीति लगती है। मारो और भाग लो। पाकिस्तानी सेना को यह लगता है कि भारतीय सेना सीमा पार कर जब आगे आयेगी तब सोचेंगे। अगर समाचारों पर भरोसा करें तो यह एक ऐसी रणनीति है जो पाकिस्तान को संकट में डाल सकती है। इस समय पाकिस्तान की सेना बलोचिस्तान और अफगान सीमा पर डटी है। अगर भारतीय सेना के इस अस्थायी प्रवास को रोकना है तो उसे आना होगा। वहां से सेना हटी नहीं कि पाकिस्तान में भारी अंदरूनी संकट शुरू हो जायेगा। पाकिस्तानी रेंजर हमारी बीएसएफ की तरह ही है जो आंतरिक सुरक्षा के लिये तैनात रहते हैं। फेसबुक पर ही एक समाचार पढ़ा कि राजस्थान की सीमा पर टैंक आदि रेल में चढ़ाकर भेजे जा रहे हैें। हैरानी इस बात यह है कि प्रकाशन माध्यमों में यह बातें आयी हैं जबकि टीवी चैनलों से यह समाचार नदारद है। संभव है कि दोनों तरफ की सरकारें अब किसी उत्तेजना से बचने के लिये ऐसे आक्रामक समाचारों से बच रही हों। इधर यह भी समाचार आया कि सीमा पर की जानकारी उच्च स्तर पर ली जा रही है।
इसके बावजूद बड़े युद्ध की संभावना अभी नहीं है। भारतीय सेना मारकाट कर लौट आयेगी तो वह बड़े हमले का विषय नहीं होगा। उल्टे पाकिस्तान अब यह शिकायत करता फिरेगा कि भारतीय सेना अब सीमा पार करने लगी है-भारत भी चीन की सकता है कि सीमांकन अभी नहीं हुआ है इसलिये भूल से सैनिक चले जाते हैं। समझौते में भारत शर्त भी रख सकता है कि भारतीय सेना पाक सीमा में घुसकर नहीं मारेगी अगर पाकिस्तान आतंकवाद बंद कर दे-पहले आतंकवाद रोकने के बदले देने को कुछ नहीं था पर अगर इस तरह भारतीय सेना करती रही तो कुछ तो देने के लिये मिल ही जायेगा। अभी इसी तरह हवाई वह मिसाइल हमले भी हो सकते हैं। पाकिस्तान फंस चुका हैं। अफगानिस्तान तथा ईरान उसके दुश्मन हो गये हैं। अमेरिका नाराज है। पाकिस्तान तो भारत का शिकार है और वही उसे करना होगा-पाकिस्तान के दुश्मन भी यही मान चुके हैं। मगर यह अभियान एक दो महीने नहीं बल्कि एक दो वर्ष तक चल सकता है। पाकिस्तान के परमाणु हमले तथा बड़े युद्ध की हानि से बचने के लिये एक कुशल रणनीति की आवश्यकता होती है जिसमें भारतीय रणनीतिकार पाकिस्तानियों से कहीं बेहतर साबित हुए हैं।
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Friday, September 9, 2016

कॉमेडी किंग का भ्रष्टाचार विरोधी प्रपंच-लघुव्यंग्य (Anit Corruption Case of Comedy King-ShortSatireArticle)


कामेडी किंग यह क्या भ्रष्टाचार पर कॉमेडी कर बैठे? अपने क्रिकेटर बॉस के कदमों का अनुसरण करने की जल्दी में भ्रष्टाचार का ऐसा प्रसंग उठा लिया जिसमें स्वयं पर ही छींटे गिर सकते हैं। प्रथम दृष्टया टीवी पर उनका मकान देखकर ही लगता है कि कहीं न कहीं आवासीय कॉलोनी में खुली जगह पर निर्माण करने की वह प्रवृत्ति दिखाई देती हे जो देश में आम है। देश में अधिकतर आवासीय योजनाओं में बाहर खुली जगह रखने का नियम होता है पर कहीं जानबूझकर उसे तोड़ते हैं तो कहीं ठेकेदार अपना हिसाब बढ़ाने के लिये उन्हें प्रेरित करते हैं। कॉमेडी किंग को यकीनन यह अंदाज नहीं रहा होगा कि उनके निर्माण में कहीं नियमों का विध्वंस भी शामिल हो सकता है। गरीबी से संघर्ष कर अमीर धरा पर कदम रखा है जहां नियमों पर चलना मूर्खता और तोड़ना समझदारी माना जाता है। पहले टीवी पर उनका यह बयान कि उनसे पैसे मांगे गये। फिर आया कि पैसे दिये फिर भी निर्माण तोड़ा गया। यह विरोधाभास भी उनके लिये समस्या खड़ी करेगा। सुबह हमें भी उनसे सहानुभूति पैदा हुई थी पर शाम होते होते समझ आ गया कि मामल इतना संगीन बनाना कॉमेडी किंग के लिये बड़ी चुनौती बनने वाला है। आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रचार में सजावट के लिये जाना है।
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दीपक भारतदीप

Wednesday, August 10, 2016

हमदर्दी मांगना नहीं-हिन्दी कविता (Hamdardi Mangna nahin-Hindi Kavita)

दिल की बात
हम छिपायें
यह ख्याल आता है।

सुनायें चौराहे पर दर्द
ज़माना हंसता
 हर कोई 
 मजाक का जाल लाता है।

कहें दीपकबापू जज़्बात से
जिंदगी जीना जरूर
देना हमदर्दी मांगना नहीं
दरियादिली हर कोई
अंदर नहीं पाल पाता है।
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Thursday, July 21, 2016

सत्य साधना-हिन्दी कविता (Satya Sadhna-HindiPoem)


जहां अपनी याद रखनी हो
वहां से चले जाना जरूरी है।
अपना दिल बचाने के लिये
स्मृतियों से बिछोह जरूरी है।
कहें दीपकबापू सपनों का बोझ
ढोते ढोते जिंदगी बर्बाद करने से
बचने के लिये
सत्य साधना जरूरी है।
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Tuesday, July 12, 2016

फकीर अमीर और वजीर-हिन्दी व्यंग्य कविता(Faqir Amir aur vazir-HindiSatirePoem)

मुफ्त का माल मिले
भले चंगे लोग
फकीर बन जाते हैं।

जहां पाखंड की पूजा हो
खाली जेब वाले भी
अमीर बन जाते हैं।

कहें दीपकबापू काबलियत से
नाता नहीं होता जिनका
टेढ़ा चलते हुए पैदल भी
वज़ीर बन जाते हैं।
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Thursday, June 23, 2016

दरियादिल संख्या में चंद हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता(Dariyadil Sankhya mein chand hain-HindiSatirepoem)

उनके घर क्या जायें
जहां दिल के
दरवाजे बंद हैं।

क्या आशा करें उनसे
जो मतलबपरस्ती के
हमेशा पाबंद हैं।

कहें दीपकबापू फिर भी
निराशा नहीं होती
कभी इस जहान के रवैये से
जहां दरियादिल बसते
चाहे संख्या में चंद हैं।
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Monday, June 13, 2016

शीतलता की तस्वीर-हिन्दी व्यंग्य कविता (Sheetalta ki Tasweer-Hindi Satire Poem)


विद्युत से चलते सामान
इंसानों के दिल की
धड़कन बढ़ा रहे हैं।

संवाद से सहजता का
भाव मिलने की बजाय
असहजता चढ़ा रहे हैं।

कहें दीपकबापू दिल में
अतिक्रमण कर लिया आग ने
मस्तिष्क में शीतलता की
तस्वीर जबरन लगा रहे है।
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