समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, June 1, 2016

खुशी कहीं दाम से नहीं मिलती-दीपकबापूवाणी (Khushi kahin dam se nahin miltee-DeepakBapuWani)

सभी इंसान स्वभाव से चिकने हैं, स्वार्थ के मोल हर जगह बिकने हैं।
‘दीपकबापू‘ फल के लिये जुआ खेलें, सत्संग में कहां पांव टिकने हैं।।
--------------
सामानों के दाम ऊंचाई पर डटे हैं, समाज में रिश्तों के दाम घटे हैं।
‘दीपकबापू’ राख से सजाते चेहरा, अकेलेपन से दिल सभी के फटे हैं।।
----------------------
खुशी कहीं दाम से नहीं मिलती, सोचने से कभी तकदीर नहीं हिलती।
‘दीपकबापू’ दिल लगाया लोहे में, जहां संवेदना की कली नहीं खिलती।
--------------
इंसानों ने जिंदगी सस्ती बना ली, ऋण का घृत पीकर मस्ती मना ली।
‘दीपकबापू’ ब्याज भूत लगाया पीछे, छिपने के लिये अंधेरी बस्ती बना ली।।
------------------
संवेदनाओं को लालच के विषधर डसे हैं, दिमाग में जहरीले सपने बसे हैं।
‘दीपकबापू’ हंस रहे पराये दर्द पर, सभी इंसान अपने ही जंजाल में फसे हैं।।
--------------------
किसी की छवि खराब करना जरूरी है, प्रचार युद्ध में सभी की यही मजबूरी है।
‘दीपकबापू’ अपने पराये में भेद न करें, कचड़ा शब्द फैंकने की तैयारी पूरी है।।
-----------------
कागज के शेर रंगीन पर्दे पर छाये हैं, काले इरादे से सफेद चेहरा लाये हैं।
‘दीपकबापू’ शोर से आंख कान लाचार, रोशनी के सौदे में अंधेरा सजाये हैं।
--------------
पीपल की जगह पत्थर के वृ़क्ष खड़े हैं, विकास के प्रतीक की तरह अड़े हैं।
‘दीपकबापू’ किताब पढ़ प्यास बुझाते, जलाशय उसमें चित्र की तरह जड़े हैं।।
----------------
कुचली जाती हर दिन धूल पांव तले, सिर पर करे सवारी जब आंधी चले।
‘दीपकबापू’ ज्ञानी मत्था टेकते धरा पर, गिरें कभी तो दिल में दर्द न पले।।
-----------------
बेचैन दिल बाहर भी न रम पाये, घर की याद हर जगह जम जाये।
‘दीपकबापू’ पैसे से पा रहे मनोरंजन, हिसाब लगाकर फिर गम पाये।।
----------------
समाज कल्याण के लिये सक्रिय दिखते, विरासत परिवार के नाम लिखते।
‘दीपकबापू’ मानव उद्धार के बने विक्रेता, पाखंड से ही बाज़ार में टिकते।।
---------------------
स्वाद लोभी अन्न का पचना न जाने, रंग देखते चक्षु अंदर का इष्ट न माने।
‘दीपकबापू’ बाज़ार की रोशनी में अंधे, उजाले के पीछे छिपा अंधेरा न जाने।।
------------------ 
ढोंगी भ्रम का मार्ग बता नर्क में डालें, फिर स्वर्ग का ख्वाब दिखाकर टालें।
‘दीपकबापू’ ओम का जाप नित करें, घर में ही बाहरी सुख का मंत्र पालें।।
---------------

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

No comments:

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ