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Wednesday, February 5, 2014

इंसानों का ज्ञान चक्षु सुप्त है-हिन्दी व्यंग्य कविता(insanon ka gyan chkshu supt hai-hindi vyangya kavita)



कोई समाधि कोई सन्यास ले रहा है पर ज्ञान उनमें लुप्त है,
बात करो पुराने ग्रंथ की तो कहें ज्ञान का रहस्य गुप्त है।
कहें दीपकबापू अपने देश में धर्म का धंधा एकदम चोखा है,
पाखंड होता सर्वशक्तिमान के नाम कौन जानता है धोखा है।
प्रतीक चिन्ह गले में पहने चमकीले वस्त्र साधु बने नायक,
गुरु बनकर पुज रहे कथा वाचक और भजन गायक।
पुराणों में है कहानियां रोज सुनाकर दिल बहलाते हैं,
भक्त करता दान वह दाम की तरह पाते हैं।
भंडारों के पंडालों में प्रसाद खाने की तरह मिलता है,
धर्मभीरु देखकर हैरान उनका ज्ञान हिलता है।
गीता के ज्ञान और विज्ञान पर अक्सर होती है बहस
न कोई समझाये न समझ पाये इंसानों का ज्ञान चक्षु सुप्त है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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