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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 29, 2015

पाखंडी दाम पाते हैं-हिन्दी कविता(pakhandi dam paate hain-hindi poem)


रक्षा के लिये बने हथियार
कत्ल करने के ही
काम आते हैं।

उगाते हैं कई लोग उद्यान में
पेड़ पौद्ये माली बनकर
मगर अखबार में कातिलों के ही
नाम आते हैं।

कहें दीपक बापू योगी बनकर
 जो धरा पर आनंद की
बहाते अनवरत धारा
 प्रचार से परे
चिंत्तन पर देते ध्यान सारा,
समाज सेवक की उपाधि
लगाकर दान के पैसे से
विज्ञापन कर पाखंडी ही
दाम पाते हैं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, March 23, 2015

बेबस राजा नकली वज़ीर-हिन्दी कविता(bebas raja nakli vazir-hindi poem)



कामना कभी भी
छोड़ती नहीं साथ
वासना के घेरे में भी
कुछ नहीं आया हाथ।


मुकरने की कला में माहिर
भीड़ में रहते लगाकर जो मुखौटे
करते वही सच की बात।

कहें दीपक बापू बिसात पर
जिंदगी लगाते हैं खिलाड़ी
बेबस राजा और नकली वजीर
पांखड की शह
तय है हर हाल में मात।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Monday, March 16, 2015

अपनी छवि के लिए-हिन्दी कविता(apni chhavi ke liye-hindi poem)



मन में भय है जिनके

पहरेदारों से घिरे हैं

वही ज़माने में

अपनी छवि

वीर जैसी दिखाते हैं।





आम आदमी लगता है

जिनको मजाक से

बहलाने का सामान

गंभीर जैसी छवि दिखाते हैं।



कहें दीपक बापू ज्ञान से

जिनका नाता नहीं

किताबों पंक्तियां रट लेते

उन पर चलना आता नहीं

आक्रामक होते

अपने मतलब के लिये

धीर जैसी छवि दिखाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Thursday, March 5, 2015

रंग और संवेदनाओं की पहचान-होली पर विशिष्ट हिन्दी कविता(rang aur sanwednaon ki pahachan-special hindi poem on holi festival)



जिनकी आंखों  में
रंग की पहचान नहीं होती
बाहर वहीं आकर्षण की
तलाश में भटकते हैं।

अपनी हार्दिक संवेदेनाओं की
पहचान जिनको नहीं होती
मन बहलाने के लिये
पैसा लेकर दुकानों पर मनोरंजन की
आस में लटकते हैं।

कहें दीपक बापू हंसने के बहाने
ढूंढने की जरुरत नहीं
अगर आता हो हंसना
पैसा रखकर जेब में
मजे के लिये
लोग यूं ही भटकते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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