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Thursday, September 3, 2015

सन्यासी और सिंहासन-हिन्दी व्यंग्य कविता(Sanyasi aur singhasan-hindi sarite poem)

ज्ञान की किताबों से
अपने स्वार्थ के अनुसार
शब्द छांटते हैं।

ज्ञान की राह चलने वाले
रहते मौन
बेचने वाले लगाते रट्टा
दाम लेकर बांटते हैं।

कहें दीपक बापू फकीरी के लिबास में
अमीरी के खिताब भी लिये जाते
नाम सन्यासी रख
सिंहासन की इच्छा किये जाते
सत्य शब्द कमीज में
बटन की तरह टांकते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Friday, August 28, 2015

गीताप्रेस की रक्षा संचालक श्रमिकों के प्रति सद्भाव अपनाकर ही कर सकते हैं-हिन्दीलेख(sevegitapress with worker setisfication-hindiarticle

                                   गीताप्रेस के बारे में हमने कल लिखा था कि हमें उसके बंद होने के कारणो का पता नहीं है पर टीवी चैनलों के समाचारों से तमाम जानकारी मिल गयी। गीताप्रेस ट्रस्ट और वहां के कर्मचारियों के बीच विवाद चल रहा है।  वहां  बरसों से कार्यरत कर्मचारियों की दयनीय हालत ने हमें विचलित किया।  जहां तक हमारी जानकारी है गीता प्रेस एक ट्रस्ट से संचालित है। वहां के कर्मचारियों की हड़ताल के बारे में हमने बहुत दिन पहले पढ़ा था तब लगा कि मामला हल हो जायेगा।  अब प्रकाशन बंद होने की खबर आयी तो हमें लगा कि शायद आर्थिक तंगी के कारण ऐसा हो रहा है पर स्थिति वह नहीं निकली।
                                   हड़ताली कर्मचारियों की बातें सुनी। उनका कहना था कि आठ हजार प्राप्त करने के हस्ताक्षर कराकर राशि कम यह कहकर दी जाती कि बाकी ठेकेदार को दी गयी है।   ठेकेदार का नाम उनको नहीं बताया जाता। यह शोषण वाली बात सुनकर धक्का लगा।
                                   बहलहाल हमें ऐसा लगा कि भारतीय अध्यात्मिक के इस प्राचीन मंदिर की तरह स्थापित गीता प्रेस के स्वामियों में कहीं न कहंी अहंकार के साथ पुरानी यह रूढ़िवादिता भी है जिसमें अकुशल श्रम को हेय समझा जाता है-श्रीमद्भागवत गीता ऐसा करना आसुरी प्रवृत्ति का मानती है।
                                   दूसरी बात यह कि गीताप्रेस के स्वामियों को चाणक्य का यह सिद्धांत ध्यान रखना चाहिये कि धर्म से मनुष्य और अर्थ से धर्म की रक्षा होती है। यहां अर्थ के साथ न स्वार्थ जोड़ें न परमार्थ का नारा लगायें।  एक बात तय रही है कि आपके धर्म की रक्षा हो तो सबसे पहले इस बात का प्रयास करें कि लोगों के पास अपनी तथा परिवार की रक्षा के लिये अर्थ की उपलब्धि पर्याप्त मात्रा में  होती रहे। स्वामी का अहंकार तभी तक ठीक है जबतब श्रमिक प्रसन्न है। हमारे अनुमान से  गीता प्रेस के पास संपत्ति और आय की कमी नहीं है और श्रमिक चाहे ठेके के हों या नियमित उन्हें प्रसन्न करना पहला धर्म होना चाहिये। एक श्रमिक ने कहा कि हम कोई पच्चीस या पचास हजार नहीं मांग रहे। अपना हक मांग रहे हैं।
                                   उसका हक से आशय शायद जितनी राशि की प्राप्ति ली जाती है उतनी ही देने से भी है। हम स्वामियों से कह रहे हैं कि पच्चीस पचास हजार भी दे दिये तो कौनसा तूफान आने वाला है।  वह श्रमिक धर्म के सैनिक हैं और गीता प्रेस के अंदरूनी लोग हैं। विश्व में जिस तरह गीता प्रेस का भव्य नाम है उसे देखते हुए अगर उन्हें अगर पच्चीस हजार भी दे दिये तो कौन वह भारी अमीर हो जायेंगे।
याद रहे जिसके सैनिक प्रसन्न नहीं होते वह राजा लड़ाई हार जाता है, यह कौटिल्य ने कहा है।  अगर यह धर्म सैनिक अप्रसन्न है तो फिर गीता प्रेस का प्रतिष्ठित नहीं रह पायेगा। फिर बंद हो या नहीं।  अकुशल श्रम के प्रति हेयता का यह भाव अगर गीता प्रेस में है तो उसके बंद होने या खुले रहने के प्रति हमारी रुचि समाप्त हो जाती है। इसलिये हमारी बात अगर गीता प्रेस के संचालकों तक कोई पहुंचा सके ठीक वरना हम तो यह आग्रह कर ही रहे हैं कि श्रमिकों के साथ सद्भावना से मामला निपटाये। हम जैसे स्वतंत्र अध्यात्मिक लेखक और पाठक यही चाहते हैं।
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Sunday, August 23, 2015

आज शांतिवार है-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख (today is peace day-hindi satire thought article,aaj shantiwar hai-hindi vyangya lekh)

                     
                                   उधर उत्तर और दक्षिण कोरिया इधर भारत और पाक के बीच तीन दिन तक प्रचार युद्ध हुआ। शनिवार तक चले इस युद्ध में दोनों ही स्थानों पर आज का रविवार एक तरह से शांतिवार लग रहा है। उधर उत्तर कोरिया सीमा पर दक्षिण कोरिया के लाउडस्पीकरों से हो रहे प्रचार पर इतना उत्तेजित था कि लगा रहा था कि अब युद्ध छिड़ने वाला ही है। अंतर्जाल पर भाई लोग इस इंतजार में लगे थे कि वह इस युद्ध के प्रारंभ होने की प्रथम सूचनावाहक बने। ऐसा हुआ नहीं। अचानक दोनों देशों के बीच शांतिवार्ता प्रारंभ हो गयी।  इधर भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिवार्ता प्रारंभ करने का शोर इतना था कि नहीं हुआ तो एकदम युद्ध प्रारंभ हो जायेगा। शांतिवार्ता नहीं हुई पर युद्ध होने जैसी कोई संभावना भी नहीं दिख रही।
                                   उधर का तो पता नहीं कि वहां प्रचार माध्यमों ने विज्ञापन से कमाई की या नहीं पर यहां जमकर विज्ञापन प्रसारित हुए। वैसे हमारा अनुमान है कि वहां भी इसी तरह के व्यवसायिक प्रचार माध्यम हैं और उन्होंने इतना ही शोर मचाया होगा।  इधर का पता है। यहां भारत और पाकिस्तान के प्रचार माध्यम विज्ञापन के मैदान में युद्धरत लग रहे थे।  पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज की भारत के अपने समकक्ष अनिल डोभाल से भेंट होनी थी। जहां तक हमारी जानकारी है दोनों सभ्रांत वर्ग के हैं और मुलाकात में एक दूसरे से शब्दों का आदान प्रदान करने वाले थे। प्रचार माध्यमों की तरफ देखें तो ऐसा लग रहा था कि दोनों कोई युद्ध करने वाले हैं।  पाकिस्तान के प्रचार माध्यम जहां अपने सुरक्षा सलाहकार को कमजोर बताकर अपने देश के लोगों से निराशा की सामग्री परोस रहे थे तो इधर भारत के प्रचार माध्यम अपने सुरक्षासलाहकार की शक्ति बखान करने में लगे थे।  हमारे समझ में यह नहीं आया कि चल क्या रहा है।  ऐसा लग रहा था कि क्रिकेट मैच चल रहा है जिसमेें कभी ओवर के बीच में विज्ञापन आ रहे हों। कहीं गेंद बदली जा रही है तो विज्ञापन आ रहा है।
                                   ऐसा लगता है कि प्रचार माध्यमों ने अपनी कमाई का कोटा पूरा कर लिया है इसलिये आज वैसी आक्रामकता नहीं दिख रही।  आमतौर से सुपर संडे या चमत्कृत रविवार इतना ठंडा नहीं रहता। आमतौर से शनिवार को ही सुपर संडे या चमत्कृत रविवार की सामग्री प्रचार प्रबंधक तैयार करते हैं पर आज शनिवार के बाद रविवार कम शांतिवार ज्यादा लग रहा है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Sunday, August 16, 2015

जिंदगी के रंग-हिन्दी व्यंग्य कविता(zindagi ke rang-hindi poem)

समंदर में अमृत के साथ
विष भी मिलता है।

कांटों के बीच गुलाब
कीचड़ में कमल खिलता है।

कहें दीपक बापू जिंदगी के रंगों से
नफरत और प्यार का
रिश्ता निभाना बेकार
जिस दुकान पर
ठंड रोकने का कंबल बिकता
मुर्दे के लिये कफन भी
वहीं मिलता है।
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Wednesday, August 12, 2015

15 अगस्त आजादी का दिन-हिन्दी व्यंग्य कविता (15 augurst azadi ka din-hindi satire poem)

आजादी का दिन
एक फिर मनायेंगे।

गुलामी पाने की होड़ में
किताबें पढ़ते छात्र
गुलामी जैसे पढ़ाते शिक्षक
आजादी का गीत गायेंगे।

कहें दीपक बापू अंग्रेेज मर गये
औलाद छोड़ गये
किताबों से मिले गुलामी
नवाबी नखरों जैसी खामी
समाज में जोड़ गये
मन उड़ना चाहता
आजाद पंछी की तरह
रूढ़ियों के बंधन की लाचारी
उसे कैसे समझायेंगे।
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Saturday, August 8, 2015

धर्म की पेशेवर कला से चिढ़ते हैं प्रचार और समाचार व्यवसायी-हिन्दी लेख(profeshnal art of busniness in religion and indian media-hindi new post in nindi article)


                    सामाजिक दृष्टि से भारत में माता की चौकी एक व्यवसाय के रूप में स्वीकार की गयी है तो उसे धर्म का धंधा कहना ठीक नहीं। शादी तथा अन्य घरेलू कार्यक्रमों पर अनेक जगह माता की चौकी का आयोजन होता है। इसे धर्म का व्यवसाय कहें तो गलत होगा। अगर कहते भी हैं तो बताना पड़ेगा कि उसमें बुराई क्या है? बार बार किसी पर माता की चौकी के नाम पर पैसे लेने पर उसे खलनायक कहना लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना है। ऐसा लग रहा है कि प्रचार व्यवसाय के लोग चाहते हैं कि भारत में भक्ति के रूप में भजन और अन्य कार्यक्रम होते हैं वह मुफ्त में हों ताकि उसका पैसा उनकी फिल्मों को देखने या उनके विज्ञापनों में प्रचारित वस्तंुओं पर खर्च हो।
                                   हम भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की बात करें तो उसमें किसी भी कर्म, रहन सहन, आचरण तथा विचारा को बुरा नहीं बताया गया।  उसमें तो मनुष्य को उसके कर्म, रहन सहन, खान पान, आचरण तथा विचार का परिणाम बताया गया हैं।  किसी के अनिष्ट की सोचना  बुरा नहीं है पर उसका स्वयं पर जो विपरीत प्रभाव होगा यह बताया गया है।   उपभोग की वस्तुओं के त्याग से अधिक उसके साथ संपर्क होने पर लिप्तता का भाव न रखने के लिये कहा गया है। संकल्प त्याग के भाव के आधार पर देखा जाये तो कोई संत अगर सोने के आभूषण पहनता है तो उस पर आपत्ति उठाना बेकार है जब तक यह पता न चले कि उसका भाव उसके प्रति लिप्तता का है या नहीं।  कोई संत भक्तों को दिखाने के लिये अच्छे कपड़े और  गहने पहनता है तो बुरी बात नहीं है। उसकी भाव लिप्तता  जाने बिना  प्रतिकूल टिप्पणी करना ठीक नहीं। प्रचार और समाचार के व्यवसायी संतों की सौंदर्य लीला में अश्लीलता और अपने फिल्म नायकों की अश्लील लीला में सौंदर्य का बोध जताते हैं। एक महिला संत बिकनी पहने तो धर्म विरोधी और उनकी फिल्मी नायिकायें पहिने तो सौंदर्य की मूर्ति हो जाती हैं।
                                   हम यहां पेशवर धार्मिक लोगों के कृत्यों का समर्थन नहीं कर रहे पर यह समझ लेना चाहिये भारतीय अध्यात्म मे भक्त चार प्रकार के भक्त होते हैं। अर्थार्थी, आर्ती, जिज्ञासु और ज्ञानी।  ज्ञानी भक्त भगवत् नाम  में अपना आसरा ढूंढ लेते हैं पर शेष तीनों वर्ग के भक्त इन्हीं भक्ति के व्यवसायियों में पास मन की शांति ढूंढते हैं। एक योग और ज्ञान साधक के रूप में हम इनकी निंदा करने की बजाय इस बात की प्रशंसा करते हैं कि वह अर्थार्थी और आर्ती भाव के भक्तों का समूह संभालते हैं। याद रखें भक्ति मन के भटकाव को रोकती है इससे समाज में हिंसक मनुष्यों की संख्या सीमित रहती है।
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Monday, August 3, 2015

परोपदेशे कुशल बहुतेरे-हिन्दी कविता(parodeshe kushal bahuter-hindi poem)


भूख सहने की ताकत
रखने की सलाह
वह लोग दे रहे
जो खाते स्वयं मलाई।

सस्ते में जिंदगी
गुजारने की बात कहते
सजी सोने से उनकी कलाई।

कहें दीपक बापू इस युग में
खोटे सिक्के भी चल जाते हैं
पानी से चमत्कार करने वालों के घर
घी के चिराग जल जाते हैं
हुनरमंद है वह लोग
करते सारे काम छोड़ भलाई।
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Sunday, July 26, 2015

सार्वजनिक छवि चमकाने के लिये फांसी का विरोध-हिन्दी चिंत्तन लेख(sarvjanik chhavi chamkane ke liye faansi ke liye virodh-hindi chintta article)


            मुंबई बम धमाकों के एक आरोपी को फांसी की सजा मिले या आजीवन कारावास की इस पर हम कोई निजी राय कायम नहीं कर पाये। इसका कारण यह है कि 22 वर्ष पूर्व हुए उन बमविस्फोटों के भयावह दृश्य हमने अखबारों में देखे थे। उसके बाद गंगा नदी में बहुत पानी बह गया तो हमारी स्मरण शक्ति की धारा में बहुत सारे नये तत्व घुल गये हैं। बहरहाल फांसी की सजा से पहले न्यायालय में एक प्रकरण कई दौर से निकलता है जिसमें सबूतों के आधार पर न्यायाधीश निर्णय देते हैं।  इसमें एक लंबा समय निकल जाता है। इन निर्णयों पर सार्वजनिक रूप से प्रतिकूल टिप्पणी करना अपराध है फिर भी प्रचार माध्यमोें जगह बनाने के लिये अब करने लगे हैं।  मुंबई धमाके के आरोपी की पृष्ठभूमि में कहीं न न कहीं मुंबईया फिल्म से भी जुड़ी है इसलिये अनेक अभिनेता अब जाकर उसे फांसी की सजा न देने की मांग कर रहे हैं।  उनके साथ मुंबई में रहने वाले अनेक  बुद्धिजीवी भी हो गये हैं। एक अभिनेता ने तो बाकायदा उसे बेगुनाह तक बता दिया और जब बवाल मचा तो उसे बयान वापस लिया।
                              हमारी सजा पर कोई राय नहीं है पर जिस तरह का वातावरण बना है उससे हैरान जरूर हैं। अगर वह बेगुनाह तो उसके यह नये हितचिंत्तक न्यायालय में जाकर उसके पक्ष में बोल सकते थे पर न बोले।  फांसी की सजा भी एक दिन में नही होती। पहले न्यायालय सजा देता है फिर वह राष्ट्रपति के पास जाती है।  इस प्रक्रिया के बीच भी इन हितचिंत्तकों के पास अवसर था पर वह अब जाकर चिट्ठी लिख रहे हैं जब राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर चुके हैं। फांसी के करीब पहुंचने के पहले उस आरोपी के हितचिंत्तकों के पास बहुत सार अवसर थे पर वह कुछ करना तो दूर सोचते हुए भी नहीं दिखे।  ऐसे में संदेह उठेंगे।  ऐसा लगता है कि आरोपी के समर्थन के बयान उसकी हित की अपनी सार्वजनिक छवि चमकाने की चिंता में ही दिये जा रहे हैं।
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Sunday, July 19, 2015

इतिहास के फरिश्ते-हिन्दी व्यंग्य कविता(itihas ke farishtey-hindi satire poem)

पंचतत्वों से बने इंसान
कभी हीरे या
सोने जैसे नहीं होते।

आदतों से मजबूर सभी
चरित्र में चालाकी के बीज
बोने जैसे नहीं होते।

कहें दीपक बापू इतिहास में
खल भी बन गये महानायक
दर्दनाक हादसे करने वाले
पर्दे पर बने घायल के सहायक
कहलाये फरिश्ते ऐसे नाम
जो भले इंसानों की जुबान पर
ढोने जैसे नहीं होते
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Thursday, July 16, 2015

बिके बुद्धिमान-हिन्दी कविता(bike buddhiman-hindi poem)


देश के अक्लमंदों ने
हर रंग के भाव की
अलग पहचान बताई है।

सभी रंगों के मेल की
तारीफ करते जरूर
यह अलग बात है
टकराव से रोटी कमाई है।

कहें दीपक बापू बिके बुद्धिमानों से
बहस करना बेकार है
अपने आकाओं से
हर रंग की पहचान
उन्होंने लिफाफे में
कागज पर रुपये से लिखी पायी है।
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Friday, July 10, 2015

सब गोलमाल है-हिन्दी व्यंग्य कविता(sab golmal hai-hindi satire poem)


चरण छूकर
सेवक की स्वयंभू उपाधि
धारण कर जाते हैं

आशीर्वाद लेकर
उड़ जाते आकाश में
स्वामीपन के अहंकार से
सभी डर जाते हैं।

कहें दीपक बापू सब गोलमाल है
 सेवा से मिलता मेवा
पर काम दिखता नहीं
अदाओं से ही प्रचार के
पन्ने भर जाते हैं।
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Monday, June 29, 2015

सिर पर ताज से-हिन्दी कविता(sir par taz se-hindi poem)

बड़े आदमी की
नीयत के काले दाग
वेशभूषा से छिप जाते हैं।

मध्य आदमी के
बनियान के दाग
कमीज से छिप जाते हैं।

गरीब आदमी के दाग
फटे वस्त्रों से
भला कहां छिप पाते हैं।

कहें दीपक बापू आम इंसानों से
पैसा पद और प्रतिष्ठा की
जंग लड़ना व्यर्थ है
चाहे सिर पर ताज से
चरित्र पर लगे दाग
चमक में छिप जाते हैं ।
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Wednesday, June 24, 2015

घबड़ाते हैं चालाक लोग-हिन्दी कविता(ghabadate hain chalak log-hindi poem)

इंतजार करो
आग बुझाने आयेंगे वही लोग
जिन्होंने लगाई है।

इंतजार करो
रोटी लेकर आयेंगे वही लोग
जिन्होंने भूख जगाई है।

कहें दीपक बापू लाचारी ओढ़कर
बैठने का सहारा इंतजार है,
बेबस का वादा यार है,
कमजोर के उठ खड़े होने से
घबड़ाते हैं वह चालाक लोग
जिन्होंने ज़माने की तरक्की
अपने घर लगाई है।
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Friday, June 19, 2015

योग साधना का औषधि जैसे महत्व का प्रचार संकीर्णता का परिचायक-21 जून अंतर्राष्टीय योग दिवस विश्व योग दिवस पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख


                             21 जून 2015 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हमारे देश में प्रचार का दौर चल रहा है वह बहुत जोरों पर है।  जहां पूरे विश्व में योग दिवस की तैयारियां चल रही हैं वहीं भारत में कहीं उबाऊ तो कहीं रुचिकर बहस भी जारी है।  जहां योग समर्थक हल्के तथा नारेयुक्त तर्कों से प्रचार पाने के मोह में प्रचाररत हैं तो अनेक लोग उनका विरोध करते हुए अनेक आजीबोगरीब तर्क भी दे रहे हैं। योग के विरोधी अनेक  ऐसे योग समर्थकों की चर्चा करते हैं जो मूलतः भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के समर्थक होते हुए भी अंततः अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति की शरण में गये हैं। इनमेें तो एक विश्व प्रसिद्ध योग शिक्षक भी हैं जो भूख हड़ताल के बाद कमजोर होने पर अंग्रेजी पद्धति वाले चिकित्सालय में भर्ती हुए-हमारा मानना है कि वह योगी होते हुए भी असहज योग की राह चलने के कारण उन्हें इस दशा का सामना करना पड़ा तो क्षणिक तनाव की वजह से उन्होंने अपनाया था।
                              बहरहाल योग के साथ चिकित्सा पद्धति की चर्चा करना ही  हमें व्यर्थ लगता है पर एक योग तथा ज्ञान साधक होने के कारण हम इस प्रयास में है कि 21 जून तक हम अपने अनुभव बांटते रहें इसलिये प्रतिदिन योग चर्चा करते हैं। हमारा अनुभव कहता है कि योगासन के समय बीमारियों की चर्चा करना एकदम बेकार है।   यह अलग बात है कि कुछ पेशेवर येागाचार्य चिकित्सक की तरह भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। अनेक बार तो स्थिति यह दिखती है कि बीमारियों के दूर करने वाले विशेष योग शिविर आयोजित किये जाते हैं।  हमारा मानना है कि ऐसे अवसरों पर साधक के दिमाग में अपनी बीमारी की बात रहती है जो उसे योग के निष्काम भाव से दूर कर देती है। दूसरी बात यह कि चाहे भले ही कोई भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का प्रचारक होने का दावा करते हुए भारतीय योग तथा चिकित्सा पद्धति का समर्थन करे पर उसे अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिये उससे संबंध प्रतिदिन रखना चाहिये।  जो प्रतिदिन योग साधना करेगा वह अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी पद्धति और आयूर्वेद की बात तो छोड़िये घरेलू इलाज से भी ठीक हो जायेगा-ऐसा हमारा मत है।  जो इतना अस्वस्थ हो जाता है कि उसे अंग्र्रेजी पद्धति की शरण में जाना पड़े तो मान लेना चाहिये कि वह प्रतिदिन योगाभ्यास नहीं करता या फिर ज्ञान की राह से भटक कर उसने अपने अभ्यास में कमी ला दी है।
                              जिन लोगों को योग से विरोध है वह इसे न करें-हमें उनसे कोई गिला नहीं है।  वह ऐसे योग समर्थकों की सूची भी जारी करें जो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का दावा करने के बाद भी अंग्रेजी संस्कृति, शिक्षा, संस्कार तथा चिकित्सा पद्धति की शरण में चले जाते हैं-इस पर भी कोई आपत्ति नहीं है। हमारा कहना है कि योग तो जीवन जीने की कला है। करो तो जानो।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Saturday, June 13, 2015

गम खुशी और कूड़ा-हिन्दी हास्य कविता(gum kuda aur khushi-hindi comedy poem)

पंगेबाज ने हमसे पूछा
दीपक बापू क्या मैं तुमसे मजाक
कर सकता हूं

हमारे हां कहते ही
घर के बाहर झाड़ू
लगाना शुरु कर दिया
और कहने लगा
मै अपना गम और खुशी
बांटने के लिये
दोस्त केवल कूड़े को ही
बना सकता हूं।
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Tuesday, June 9, 2015

भलाई का फूल-हिन्दी कविता(BHALAI KA FOOL-HINDI POEM)

आदर्श व्यक्तित्व की
तलाश में भटकते हैं
पर कोई मिलता नहीं।

बड़े बड़े नाम सुनते हैं
बड़े जाल वह बुनते हैं
पास जाकर देखते
मतलब के बिना कोई हिलता नहीं है।

कहें दीपक बापू सफेद कागज पर
काले अक्षरों में धवल छवि का प्रचार
रंगीन पर्दे पर प्रसिद्धि का व्यापार
बना देता है किसी को भी देवता
जिनकी छांव में भलाई का फूल
कभी खिलता नहीं है।
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Thursday, June 4, 2015

संकट के बादल-हिन्दी कविता(sankat ke badal-hindi poem)


उनकी रस भरी बातें
सुनकर खुश हुए
मगर हाथ में उन्होंने
सूखा कागज ही थमाया।

अपनी भड़ास से
हमारे कान किये घायल
बोरियत से जो संपर्क पाया।

कहें दीपक बापू दुनियां पर
काबिज है वह लोग
गुड़ नहीं देते कभी
गुड़ जैसी बात जरूर करते
उनकी अदाओं पर लोग मरते
इसलिये जब बरसते संकट के बादल
मदद की मिलती नहीं छाया।
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Saturday, May 30, 2015

कमीशन की आग-हिन्दी क्षणिकायें(fire of commision-hindi poem)

कागज पर नक़्शे में  था
पर तालाब बनाया नहीं,
कमीशन की आग में
जल गया प्यास बुझाने का सपना
इसलिये हिसाब का
कागज  बनाया नहीं।
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कमीशन के आग में
सड़कें जल रहीं हैं
इसलिये ही गर्मी में पिघल रही हैं।
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यकीन करो
सभी के सपने
कभी तो पूरे हो जायेंगे,
कमीशन की आग में
चावल के दाने पककर
तारों की तरह
आखों को बहलायेंगे।
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