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Thursday, December 3, 2015

हमें खोना मना है-हिन्दी शायरी (Hamen Khona Mana hai-Hindi Shayari

घर का भंडार भरा
फिर भी मुख के लिये
खाना मना है।

पांव जमीन पर नहीं चलते
स्वच्छ हाथ कभी नहीं मलते
फिर भी सोना मना है।

कहें दीपकबापू सपने देखे
बरसों तक जिन्होंने
महल बनाने के
पहुंचे जब रहने
पीड़ाओं ने कह दिया
हमें खोना मना है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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