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Monday, December 21, 2015

उन्मुक्त भाव-हिन्दी कविता(UnmuktBhav-HIndi Kavita)

राजा स्वयं को राजा
इसलिये समझे
क्योंकि प्रजा स्वयं को
प्रजा  समझे

साहुकार स्वयं को धनी
इसलिये समझे
क्योंकि गरीब स्वयं को
मजबूर समझे।

कहें दीपकबापू सोच से
रिहाई जरूरी है
उन्मुक्त भाव से जीने की
आदत हो जाये
तभी कोई जिंदगी समझे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
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