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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, May 3, 2016

हताश कंकाल-हिन्दी कविता(Hatash Kankal-Hindi Poem)

हांडमांस के बुत
बरसों से आंखों के
सामने खड़े हैं।

कोई पैमाना नहीं
नाप सकें बुद्धि का कद
दावे तो सभी करते
उनके दिल बड़े हैं।

कहें दीपकबापू पर्यावरण में
हवाओं के साथ 
आग की जंग चल रही है
दग्ध हो चुकी संवेदनायें
हताश कंकाल सोच में खड़े हैं।
------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
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