बिजली गुल हो गयी।
बाहर चलती आंधी ने
मचाया शोर
गरज कर बरसा पानी
बरसात के इंतजार में रचे थे शब्द
बहते पसीने का दिखाया था दर्द
मानसून की पहली बरसात
सब धो गयी।
गर्मी पर लिखी कविता बस यूं खो गयी।
.....................
गर्मी पर लिखकर पहुंचा
वह कवि सम्मेलन में
बीच में बरसात हो गयी।
मंच पर आकर बोला वह
‘मेरे गुरु ने कहा था कि
कभी मौसम पर मत लिखना
चाहे जब बदल जाता है
कभी चुभोता है नश्तर
कभी सहलाता है
लिखकर निकला था घर से
गर्मी पर ताजा कविता
बीच रास्ते में पड़ी बरसात
लिखा कागज अब मेरी समझ में नहीं आता
धूप और पसीने से
पैदा हुए जज्बात
सुनाने का मन था
पर मानसून की पहली बरसात ने
इतना आनंदित किया कि
मेरी अक्ल सो गयी।
फिर सुनाऊंगा कभी फिर कविता
अभी तो मेरी कविता बरसात धो गयी।
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
दीपक जी,जब बरसात रुक जाए तो जरूर सुनाना कविता.....:)
मजेदार रचना !!
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