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Wednesday, August 8, 2012

ख्वाब पत्थरों के बीच सो गया है-हिन्दी कविता (khwab pattharon ke beech so gaya hai-hindi kavita

अपने दर्द और खुशी पर
लिखने का मन अब नहीं करता है,
संवेदनहीन इंसानों से अपने
अंदर की बात कहने से
अब दिल नहीं भरता है,
सामानों की भीड़ में
दोस्त का नाता खो गया है।
बाज़ार में ढूंढ रहा है नयापन
पुराने रिश्तों से हर कोई बोर हो गया है।
कहें दीपक बापू
ताजगी के अहसास
अब महफिलों में नहीं आते,
अंतर्मन को छू लें
वह सुर कान में नहीं आते,
क्या करेंगे आजकल के लोग तरक्की
जिनका ख्वाब पत्थरों के बीच सो गया है।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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