अपने दर्द और खुशी पर
लिखने का मन अब नहीं करता है,
संवेदनहीन इंसानों से अपने
अंदर की बात कहने से
अब दिल नहीं भरता है,
सामानों की भीड़ में
दोस्त का नाता खो गया है।
बाज़ार में ढूंढ रहा है नयापन
पुराने रिश्तों से हर कोई बोर हो गया है।
कहें दीपक बापू
ताजगी के अहसास
अब महफिलों में नहीं आते,
अंतर्मन को छू लें
वह सुर कान में नहीं आते,
क्या करेंगे आजकल के लोग तरक्की
जिनका ख्वाब पत्थरों के बीच सो गया है।
------------------------------------------------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------http://deepkraj.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment