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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, September 18, 2012

ज़माने के जज्बात-हिंदी कविता (zamane ke jazbat-hindi poem)

उनके चेहरे पर मुखौटा है
उसके पीछे कौन है,
जवाब में वह मौन है।
कहें दीपक बापू जिंदगी में
इतने मंजर हमने देखे हैं
बस चेहरे बदलते हैं
ज़माने का भला करने की
अदायें पुरानी दिखाते हुए सभी
पर्दे पर  टहलते है,
उनका जिस्म सजा है अपने आकाओं के
दान और चंदे  पर,
भर लिये सोने और चांदी से अपने घर,
क्या जाने ज़माने का वह दर्द,
जज्बात हो गये उनके सर्द,
क्यों जानेंगे
दरवाजे पर बीमार, बेकार और भूखा
आकर खड़ा कौन है?

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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