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Friday, September 5, 2014

स्वार्थ और परमार्थ-हिन्दी व्यंग्य कविता(swarth aur parmarth-hindi satire poem)



 भक्ति में शक्ति है
इसलिये होती कम
मगर बाहर ज्यादा दिखाते।

आकाश में देवता रहते
इसलिये हमेशा हाथ उठाकर
उनसे मांगना सिखाते।

कहें दीपक बापू नैतिकता से
परहेज करते स्वयं लोग,
इच्छा यह कि
दूसरा पाले आदर्श रोग,
स्वार्थ की राह पर चलने वाले,
परमार्थ की आशा दूसरे पर डाले,
स्वामीपन का अहंकार हृदय में
समाज सेवक की सूची में
कमाई के लिये नाम लिखाते।
--------------a
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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