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Thursday, January 22, 2015

दिखावे के दरियादिल-हिन्दी कविता(dikhave ke dariyadil-hindi poem)



वह हमारा सम्मान
नहीं कर सकते
जो स्वयं ज़माने से
प्रशंसा पाने के लिये तरसे हैं।

हर शुभ अवसर पर
बांटने के लिये जुटाये उपहार
अपनों को देने के लिये
हाथ से समेट लेते
गैरों के लिये
हमेशा उनकी जुबान से
नये नये वादे ही बरसे हैं।

कहें दीपक बापू दरियादिली से
जिनकी सोच खाली है,
उनके हाथ ही
खजाने की ताली है,
उनकी कृपा दृष्टि की
अपेक्षा व्यर्थ है
बाहर पहरे पर डटे फरसे हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Tuesday, January 13, 2015

संख्या नहीं पराक्रम जरूरी-हिन्दी कविता(sankhaya nahin parakram jaroori-hindi poem)




सच्चाई यह है कि
संख्या बल से
युद्ध नहीं जीते जाते।

पराक्रमियों का संरक्षण
समाज अगर न पा सके
शांति से दिन नहीं बीते जाते।

कहें दीपक बापू बुद्धि के वीरों पर
दो गुणा दो बराबर चार का सिद्धांत
असर नहीं करता
एक और ग्यारह की योजना से
करते किला फतह,
भीड़ बढ़ाकर नहीं चाहते कलह,
अपनी सोच से बढ़ते आगे
बांटते हैं वह सभी को प्रसन्नता
स्वयं भी सुख पीते जाते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Saturday, January 3, 2015

ख्वाबों के सौदागर-हिन्दी व्यंग्य कविता(khwabon ke saudagar-hindi satire poem)




सत्य से सभी लोग

बहुत कतराते हैं,

झूठे अफसानों से

अपना दिल

इसलिये बहलाते हैं।



सड़क पर पसीने से

नहाये चेहरों से

फेरते अपनी नज़र

खूबसुरत तस्वीरों से

अपनी आंखें सहलाते हैं।



कहें दीपक बापू सोच का युद्ध

ज़माने में चलता रहा है,

घमंड में डूबे लोग

अक्ल का खून बहा है,

सौेदागर ख्वाब बेचकर

पैसा कमा रहे हैं,

ज़माने पर अपना

राज भी जमा रहे हैं,

बगवात रोकने वाले

सबसे बड़े चालाक कहलाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Monday, December 1, 2014

प्रचार के बाज़ार में खबर-हिन्दी कविता(prachar ka bazar mein khabar-hindi kavita)



कत्ल की खबर
प्रचार के बाज़ार में
महंगी बिक जाती है।

व्याभिचार का विषय हो तो
दिल दहलाने के साथ
 मनोरंजन के तवे पर विज्ञापन की
रोटी भी सिक जाती है।

कहें दीपक बापू साहित्य को
समाज बताया जाता था दर्पण,
शब्दों का अब नहीं किया जाता
पुण्य के लिये तर्पण,
अर्थहीन शब्द
चीख कर बोलने पर
प्रतिष्ठा पाता
जिसके भाव शांत हों
उसकी किसी के दिल पर स्मृति
टिक नहीं पाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Sunday, November 23, 2014

हम आश्रम नहीं बना सकते-हिन्दी हास्य कविता(ham ashram nahin bana sakate-hindi comedy poem)



मंदिर में मिलते ही बोला फंदेबाज
‘‘दीपक बापू तुमने इतना लिखा
फिर भी फ्लाप रहे,
पता नहीं किसके शाप सहे,
इससे तो अच्छा होता तुम
कोई संत बन जाते,
खेलते माया के साथ
शिष्य की बढ़ती भीड़ के साथ
जगह जगह आश्रम बनाते,
कुछ सुनाते कवितायें,
दिखाते कभी गंभीर
कभी हास्य अदायें,
हल्दी लगती न फिटकरी
प्रचार जगत के सितारे बन जाते।

हंसकर बोले दीपक बापू
‘‘यह तुम्हारी सहृदयता है
या दिल में छिपा कोई बुरा भाव,
हमें उत्थान की राह दिखाते हो
या पतन पर लगवा रहे हो दांव,
अपनी चिंता के बोझ से ही
हो जाते हैं बोर
भीड़ की भलाई सोचते हुए
बुद्धि से भ्रष्ट हो जाते,
कितना भी ज्ञान क्यों न हो
माया है महाठगिनी
अपने ही इष्ट भी खो जाते,
अनाम रहने से
स्वतंत्रता छिन नहीं जाती,
मुश्किल होती है जब
नाम के साथ बदनामी
लेकर आती संकट
घिन हर कहीं छाती,
प्रसिद्धि का शिखर
बहुत लुभाता है,
गिरने पर उसी का
छोटा पत्थर भी कांटे  चुभाता है,
सत्य का ज्ञान
होने पर भी
अपने आश्रम महल बनाकर
माया के अंडे हर ज्ञानी पाता है,
मगर होता है जब भ्रष्ट
अपनी सता से
तब अपने पीछे लगा
डंडे का हर दानी पाता है,
तुम्हारी बात मान लेते
हम इस धरती पर
चमकते भले ही पहले
मगर बाद में बिचारे बन जाते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Wednesday, November 12, 2014

छवि की चिंता-हिन्दी व्यंग्य कविता(chhani ki chinta-hindi satire poem)



प्रचार के इस युग में
जो देवपद पर पर बैठा
या रहे दैत्य कर्म में लिप्त
जमकर प्रचार पाता है।

उत्पादों के विज्ञापन का
वाहन खींच सके
गधा हो तब भी
महान कहलाता है।

कहें दीपक बापू आकर्षक कार्य से
अधिक छवि बनाने की इच्छा में
मनुष्य जुटा रहता है सदैव
एक बार पर्दे पर चेहरा आये
या कागज पर नाम छाये
सस्ती औकात वाला भी
अनमोल हो जाता है।
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Tuesday, November 4, 2014

धवल छवि के लिये परनिंदा-हिन्दी कविता(dhawal chhavi ke liye parninda-hindi poem)



स्वयं के बुरे रहस्य
छिपाने के लिये
दूसरे के दोषों पर
अपने शब्द रचकर
बाज़ार में सुनाने ही होते हैं।

संसार में अपनी धवल छवि
बनाने के लिये
परनिंदा के गीत
भीड़ में गुनगुनाने ही होते हैं।

माया काली हो गया गोरी
जिसके घर आ आये
उसका चमका देती चेहरा,
डराती बहुत
बैठा देती बाहर पहरा,
कांपते हुए गुजारते लोग
आपस में रहते हुए
अलग होते ही
पुराने रिश्ते भी
सनसनी बनाकर  नकद में
उनको भुनाने ही होते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Tuesday, October 28, 2014

मुफ्त की राय और तर्क-हिन्दी कविता(mufta ki ray aur tark-hindi poem)




मस्तिष्क में चलते हमेशा
अंतर्द्वंद का अनवरत दौर
कभी खत्म नहीं होता।

चर्चा करो ज़माने से
छिड़ जाती जोरदार बहस
मचता है शोर
मुफ्त की राय के प्रदर्शन में
तर्क कभी भारी नहीं होता।

कहें दीपक बापू ज्ञानी होने का
भ्रम पाले जी रहे हैं,
आनंद का मार्ग है लापता
निराशा का दर्द सभी पी रहे हैं।
शक्तिशाली आदमी वही कहलाता
अपनी नीयत में हमेशा
जो सच के बीज बोता।
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Thursday, September 11, 2014

दैवीय कण बनेगा मनोंरजन व्यवसाय का सहायक-हिन्दी व्यंग्य(Daviy kan banega manoranjan vyavasay ka sahara-hindi vyangya lekh, god porticla help for entertainment busines-hindi satire thought article)



            एक पाश्चात्य वैज्ञानिक ने बताया है कि दैवीय कण अत्यंत शक्तिशाली है और वह पल भर में सृष्टि का नाश कर सकता है। पश्चिम में ही एक वैज्ञानिक प्रयोग हुआ था जिसमें यह दावा किया गया कि इस सृष्टि के रचयिता दैवीय कण का पता चल गया है। इस संबंध में प्रयोग चल रहे हैं पर हम जब इसे भारतीय अध्यात्मिक विज्ञान की दृष्टि से देखते हैं तो यह एक प्रचार के लिये रचे गये प्रपंच से अधिक नहीं है।  हमें पाश्चात्य विज्ञान की समझ नहीं है पर दैवीय कण शब्द को प्रयोग ही इस बात पर संदेह पैदा करता है कि इस तरह की कोई खोज हुई है जिसके आधार पर भ्रम को सत्य स्प बताकर प्रचारित किया जायेगा।
            दैवीय कण की स्वीकार्यता का अर्थ है कि इस संसार के आधार में भौतिक तत्व की उपस्थिति मान लेना।  हमारा सिद्धांत कहता है कि परमात्मा प्रकट स्वरूप में नहीं है। इस सृष्टि में जीवन प्रवाहित करने के लिये पांच तत्व माने गये हैं-प्रथ्वी, वायु, सूर्य, जल और आकाश-अगर दैवीय कण सिद्धांत को मान लिया जाये तो वह भौतिक तत्व प्रथ्वी का संकेत देता है।  हमारे अध्यात्मिक विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार इन पंच तत्वों को शक्ति प्रदान करने वाला अदृश्य, अप्रकट तथा अव्यक्त पर तत्व परमात्मा है। वह अनश्वर तथा स्पर्श से परे है, इसलिये दैवीय कण का सिद्धांत भारतीय दर्शन से मेल नहीं खाता।

            एक दूसरा सिद्धांत भी इस दैवीय कण के नियम से मेल नहीं खाता।  पश्चिम का दैवीय सिद्धांत कहता है कि वह शक्तिशाली है जबकि हमारा मानना है कि वह स्वयं शक्ति है। वह इस सृष्टि का धारक है पर इसमें कहीं स्वयं उपस्थित नहीं है।  इसलिये पश्चात्य वैज्ञानिकों का यह दावा स्वीकार करना कठिन है कि उसे देखा गया है।  उनकी बातों से ऐसा लगता है कि जैसे वह उनके हाथ लग गया है। अगर यह सही है तो वैज्ञानिकों से कई प्रमाण मांगे जा सकते हैं।  एक तो पानी से ही जुड़ा है।  हमें एक सज्जन कह रहे थे कि पानी में ऑक्सीजन और हाईड्रोजन होता है अगर वैज्ञानिकों के  हाथ दैवीय कण लग गया है तो वह ऑक्सीजन और हाईड्रजन मिलाकर पानी बनाकर दिखा दें।  इस तरह मिश्रित तत्वों से बनी प्रकृतिक वस्तुऐं जिनका मानव शक्ति से निर्माण संभव नहीं है उन्हें दैवीय कण से जोड़कर दिखाने पर ही पश्चात्य विज्ञान के दावों पर यकीन किया जा सकता है।
            जिस तरह भारत में मनोरंजन की विषय धर्म के नाम पर निर्धारित होते हैं उसी तरह पश्चिम में विज्ञान के आधार पर उनका सृजन होता है। पश्चिम की एक फिल्म आई थी जुरासिक पार्क जिसमें डायनासोर नाम के एक कल्पित शक्तिशाली जीव का सिद्धांत दिखा गया था।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में किसी ऐसे जीव का उल्लेख नहीं मिलता पर आजतक इस कथित डायनासोर के जीवाश्य मिल ही रहे है जिनकी चर्चा होती हैं।  उसी तरह पश्चिम ने दूसरे ग्रहों से आये एलियन का भी प्रचार कर रखा है।  इस पर जमकर मनोरंजन का व्यवसाय चल रहा है। यह अलग बात है कि आज तक किसी ने एलियन को देखा ही नहीं है। अभी पश्चिम में सात सौ वर्ष बाद का जीवन दर्शाने वाला एक वीडियो गेम प्रचारित हो रहा है। इसके बारे में दावा यह किया जा रहा है कि बड़े बड़े वैज्ञानिकों से चर्चा कर यह गेम बनाया गया है।  इन वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह विश्व में प्रयोग चल रहे हैं उसके आधार पर सात सौ वर्ष बाद इस संसार में मनुष्य का जीवन ऐसा ही होगा जैसा कि खेल में दिखा गया है।
            भारत में अधिकतर फिल्में कहीं न कहीं धर्म की आड़ लेकर बनती हैं पर उससे कोई भ्रम नहीं फैलता पर पश्चिम में कथित विज्ञान की सहायता से फिल्म बनाकर उसे भूत और भविष्य का सत्य मान लिया जाता है। वर्तमान के हालातों पर भ्रमित करना सहज नहीं है इसलिये पश्चिम रचनात्मक जगत  उससे दूर ही रहता है। बहरहाल अब हमें कथित दैवीय कण पर आधारित मनोंरजन सामग्री का इंतजार है।  एक बात तय रही कि इसमें गंभीर और हास्य दोनों तरह के विषय शमिल होंगे।  ठीक उसी तरह जैसे डायनासोर और एलियन के विषयों पर भारी मनोरंजक व्यवसाय हुआ उसी तरह दैवीय कण भी सहायक होंगे।
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Friday, September 5, 2014

स्वार्थ और परमार्थ-हिन्दी व्यंग्य कविता(swarth aur parmarth-hindi satire poem)



 भक्ति में शक्ति है
इसलिये होती कम
मगर बाहर ज्यादा दिखाते।

आकाश में देवता रहते
इसलिये हमेशा हाथ उठाकर
उनसे मांगना सिखाते।

कहें दीपक बापू नैतिकता से
परहेज करते स्वयं लोग,
इच्छा यह कि
दूसरा पाले आदर्श रोग,
स्वार्थ की राह पर चलने वाले,
परमार्थ की आशा दूसरे पर डाले,
स्वामीपन का अहंकार हृदय में
समाज सेवक की सूची में
कमाई के लिये नाम लिखाते।
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Thursday, August 21, 2014

प्रतिभावान बुत--हिन्दी कविता(pratibhawan but-hindi kavita or poem)



कोई इंसान वातानुकूल यंत्र की
ठंडी हवा लेते हुए
राजमहल में पल रहा है।

कोई सूरज की जलती किरणों में
रोटी के लिये सामान बेचता हुआ
सड़क पर आग में जल रहा है।

कोई समाजवाद का
झंडा उठाये अपने हाथ में
अपने कर्म से भाग्य बदल रहा है।

कोई पूंजीवाद के लिये
उदारीकरण का नारा लगाता
विकास के सांचे में
प्रतिभावान बुत की तरह ढल रहा है।

कहें दीपक बापू चमकीली रातों में
गुजारने की ख्वाहिशें
इंसानियत को अंधेरे में खड़ा कर देंगी
बढ़ती लालच की उष्मा में संसार का
पूरा दिल जल रहा है।
                                                               ------------------------------------
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