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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, April 7, 2015

विज्ञापन युग में-हिन्दी कविता(vigyapan yug mein-hindi kavita)


सौदागरों के लिये
इंसान कभी ग्राहक
कभी सामान होते हैं।

सुख का बोझ डालते
पैसा लेकर दिमाग पर
लोग भी उसे ढोते हैं।

कहें दीपक बापू विज्ञापन युग में
दौलत का भाव बढ़ा है,
जिसकी जेब भारी
उसके दिमाग पर
घमंड भी चढ़ा है,
कातिलों के लिये
बेबस का खून पानी है
जिसमें वह अपने
हथियार ही धोते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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