वैसे ही उनके साथ होते,नकली हमदर्दी दिखाने वाले
दूसरों के क्या समझेंगे, अपने ही जज्बात नहीं समझते
निगाहें बाहर ही ठहरीं होतीं, अंदर लगे दिल पर ताले
ताकत पाने की चाहत में सभी ने खुद को किया लाचार
हैरान होते हैं वह लोग,बैठे जमाने के लिये जो दर्द पाले
घाव होने पर लोग आंसू बहाते और भरते सिसकियां
सूख तो फिर टकराते उसी पत्थर से, जिसने जख्म कर डाले
जंग की तरह जिंदगी जीने के आदी हो गये है दुनियां के लोग
अमन का पैगाम क्या समझेंगे, सभी है बेदर्द दिल वाले
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
sahi hai bhai.narayan narayan
अच्छे भाव हैं।बधाई।
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