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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, June 12, 2009

फोटो स्वयंबर-हास्य व्यंग्य (foto svyanbar-hindi hasya vyangya)

उस सुंदरी ने तय किया कि वह उसी लड़के से पहले प्रेम लीला कर बाद में विवाह करेगी जो इंटरनेट पर व्यवसाय करते हुए अच्छा कमा रहा होगा। एक सहेली ने मना किया और कहा-‘अरे, भई हमें नहीं लगता है कि कोई लड़का इंटरनेट पर काम करते हुए अच्छा कमा लेता होगा अलबत्ता जो कमाते होंगे वह शायद ही अविवाहित हों।’
सुंदरी ने कहा-‘तुम जानती नहीं क्योंकि तुम्हारे पास इंटरनेट की समझ है ही क्हां? अरे, जिनको कंप्यूटर की कला आती है उनके लिये इंटरनेट पर ढेर सारी कमाई के जरिये हैं। मैं कंप्यूटर पर काम नहीं कर पाती इसलिये सोचती हूं कि कोई इंटरनेट पर कमाई करने वाला लड़का मिल जाये तो कुछ शादी से पहले दहेज का और बाद में खर्च का जुगाड़ कर लूं।’

उसकी वह सहेली तेजतर्रार थी-सुंदरी को यह पता ही नहीं था कि उसका चचेरा भाई इंटरनेट पर उसे बहुत कुछ सिखा चुका था। वह कुछ फोटो उसके घर ले आई और उस सुंदरी को दिखाने लगी। उस समय उसके पास दूसरी सहेली भी बैठी थी जो इंटरनेट के बारे में थोड़ा बहुत जानती थी और उसके बारे में बताने ही उसके घर आयी थी। पहली सहेली ने एक फोटो दिखाया और बोली-‘यह हिंदी में कवितायें लिखता हैं। इसका ब्लाग अच्छा है। ब्लाग पर बहुत सारे विज्ञापन भी दिखते हैं। तुमने तो अखबारों में पढ़ा होगा कि हिंदी में ब्लाग लेखक बहुत अच्छा कमा लेते हैं।’
दूसरी सहेली तपाक से बोली उठी-‘अखबारों में बहुत छपता है तो हिंदी के ब्लाग लेखक भी रोज अब भी हिंदी ब्लाग से कमाने के नये नुस्खे छापते हैं पर उन पर उनके साथी ही टिपियाते हैं कि ‘पहला हिंदी ब्लाग लेखक दिखना बाकी है जो लिखने के दम पर कमा रहा हो’, फिर इस कवि का क्या दम है कि कमा ले। गप मार रहा होगा।’
पहली सहेली ने कहा-‘पर यह स्कूल में शिक्षक है कमाता तो है।’
सुंदरी उछल पड़ी-‘मतलब यह शिक्षक है न! इसका मतलब है कि इंटरनेट पर तो शौकिया कवितायें लिखता होगा। नहीं, मेरे लिये उसके साथ प्रेम और शादी का प्रस्ताव स्वीकार करना संभव नहीं होगा।’
सहेली ने फिर दूसरा फोटो दिखाया और कहा-‘यह ब्लाग पर कहानियां लिखता हैं!’
सुंदरी इससे पहले कुछ कहती उसकी दूसरी सहेली ने पूछ लिया-‘हिंदी में कि अंग्रेजी में!’
पहली ने जवाब दिया-‘हिंदी में।’
अब तक सुंदरी को पूरा ज्ञान मिल गया था और वह बोली-‘हिंदी में कोई कमाता है इस पर यकीन करना कठिन है। छोड़ो! कोई दूसरा फोटो दिखाओ।’
पहली सहेली ने सारे फोटो अपने पर्स में रखते हुए कहा-‘यह सब हिंदी में ब्लाग लिखते हैं इसलिये तुम्हें दिखाना फिजूल है। यह फोटो स्वयंबर अब मेरी तरफ से रद्द ही समझो।’
वह जब अपने पर्स में फोटो रख रही थी तो उसमें रखे एक दूसरे फोटो पर उसका हाथ चला गया जिसे उसने अनावश्यक समझकर निकाला नहीं था। उसने सभी फोटो सही ढंग से रखने के लिये उसे बाहर निकाला। दूसरी सहेली ने उसके हाथ से वह फोटो ले लिया और कहा-‘यह फोटो पर्स में क्यों रखे हुए थी।’
पहली ने कहा-‘यह एक अंग्रेजी के ब्लाग लेखक का है।’
सुंदरी और दूसरी सहेली दोनों ही उस फोटो पर झपट पड़ी तो वह दो टुकड़े हो गया पर इसका दोनों को अफसोस नहीं था। सुंदरी ने कहा-‘अरे, वाह तू तो बिल्कुल शादियां कराने वाले मध्यस्थों की तरह सिद्धहस्त हो गयी है। बेकार का माल दिखाती है और असली माल छिपाती है। अब जरा इसके बारे में बताओ। क्या यह अपने लिये बचा रखा है?’
पहली सहेली ने कहा-‘नहीं, जब मैं इंटरनेट से तुम्हारे लिये फोटो छांट रही थी तब इसके ब्लाग पर नजर पड़ गयी और पता नहीं मैंने कैसे और क्यों इसका फोटो अपने एल्बम मेें ले लिया? इसलिये इसको बाहर नहीं निकाला।’
सुंदरी ने पूछा-‘पर यह है कौन? यह तो बहुत सुंदर लग रहा है। आह.... अंग्रेजी का लेखक है तो यकीनन बहुत कमाता होगा।’
पहली ने कहा-‘मेरे जान पहचान के हिंदी के ब्लाग लेखक हैं जो व्यंग्य वगैरह लिखते हैं पर फ्लाप हैं वह कहते हैं कि ‘सभी अंग्रेजी ब्लाग लेखक नहीं कमाते।’
दूसरी सहेली ने कहा-‘हिंदी का ब्लाग लेखक क्या जाने? अपनी खुन्नस छिपाने के लिये कहता होगा। मैंने बहुत सारे हिंदी ब्लाग लेखकों की कवितायें और कहानियां पढ़ी हैं। बहुत बोरियत वाली लिखते हंै। तुम्हारा वह हिंदी ब्लाग लेखक अपने को आपको तसल्ली देता होगा यह सोचकर कि अंग्रेजी वाले भी तो नहीं कमा रहे। पर तुम यह बताओ कि यह फोटो किस अंग्रेजी ब्लाग लेखक का है और वह कहां का है।’
दूसरी सहेली ने कहा-‘इसका पता ही नहीं चल पाया, पर यह शायद विदेशी है। इसकी शादी हो चुकी है।’
सुंदरी चिल्ला पड़ी-‘इतना बड़ा पर्स तो ऐसे लायी थी जैसे कि उसमें इंटरनेट पर लिखने वाले अंग्रेजी के ढेर सारे लेखकों के फोटो हों पर निकले क्या हिंदी के ब्लाग लेखक। उंह....यह तुम्हारा बूता नहीं है। बेहतर है तुम मेरे लिये कोई प्रयास न करो।’
दूसरी सहेली ने कहा-‘तुम्हारे फोटो में मैंने एक देखा था जो तुमने नहीं दिखाया। वह शायद चैथे नंबर वाला फोटो था। जरा दिखाना।’
पहली सहेली ने कहा-‘वह सभी हिंदी के ब्लाग लेखकों के हैं।’
‘जरा दिखाना’-दूसरी सहेली ने कहा।
पहली सहेली ने फिर सारे फोटो निकाले और उनके हाथ में दे दिये। दूसरी सहेली ने एक फोटो देखकर कहा-‘तुम इसे जानती हो।’
दूसरी सहेली ने कहा-‘हां, यह मेरे चचेरे भाई का फोटो है। भला लड़का है यह एक कंपनी में लिपिक है। फुरसत में ब्लाग पर लिखता है। ’
दूसरी सहेली ने कहा-‘यह लिखता क्या है?’
पहली सहेली ने कहा-‘यह कभी कभार ही लिखता है वह भी कभी हिंदी ब्लाग से कमाने के एक हजार नुस्खे तो कभी रुपये बनाने के सौ नुस्खे।’
सुंदरी ने पूछा-‘खुद कितने कमाता है।’
पहली ने कहा-‘यह तो मालुम नहीं पर कभी कभार इसकी तन्ख्वाह के पैसे खत्म हो जाते हैं तो इंटरनेट का बिल भरने के लिये यह मुझसे पैसे उधार ले जाता है।’
सुंदरी ने कहा-‘वैसे तुम अगर स्वयं प्रयास न कर सको तो अपने इस चचेरे भाई से पूछ लेना कि क्या कोई इंटरनेट पर अंग्रेजी में काम करने वाला कोई लड़का हो तो मुझे बताये। हां, तुम हिंदी वाले का फोटो तो क्या उसका नाम तक मेरे सामने मत लेना।’
पहली सहेली ने ने स्वीकृति में गर्दन हिलायी और वहां से चली गयी। इस तरह ब्लाग लेखकों का फोटो स्वयंबर समाप्त हो गया।
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नोट-यह व्यंग्य काल्पनिक तथा इसका किसी व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है और किसी से इसका विषय मेल खा जाये तो वही उसके लिये जिम्मेदार होगा।
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

मस्तानों का महक़मा said...

ये एक बेहतर सोच है... इंटरनेट की दुनिया को समझने की।

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