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Thursday, February 16, 2012

अपनी औकात-हिन्दी शायरी (apni aukat-hindi shayri)

गफलत में हम कुछ यूं रहे कि
जिन पर भरोसा किया
वह उसे निभाना जानते नहीं थे,
दूसरों से उम्मीद करते वह
पर खुद भी वफा निभाएँ यह
कभी मानते नहीं थे।
कहें दीपक बापू
लोगों के कायदे
अपने मतलब से बदल जाते हैं,
चालक ढूंढें अपने फायदे
मूर्ख हाथ मलते रह जाते हैं,
जिंदगी में दोस्ती और रिश्ते भी
सौदे की तरह जिये जाते हैं
जब तक हमारे जज़्बात कुचले न गए
दूसरों की क्या
हम अपनी औकात जानते नहीं थे।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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