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Friday, January 4, 2008

चाणक्य नीति:देवालयों का धन हड़पने वाला चांडाल

1.देव-मंदिरों के लिए निर्धारित भूमि, रत्नकोश (धन और अन्य संपदा), गुरुओं के भूमि जो धोखे से अपने कपट के व्यवहार से हड़प लेता है उसे चांडाल कहा जाता है।

2.रूप की शोभा गुण है। अगर गुण नहीं है तो रूपवान स्त्री और पुरुष भी कुरूप लगने लगता है।
3.कुल की शोभा शील मैं है। अगर शील नहीं है तो उच्च कुल का व्यक्ति भी नीच और गन्दा लगने लगता है।
4.विद्या की शोभा उसकी सिद्धि में है। जिस विद्या से कोई उपलब्धि प्राप्त हो वही काम की है।धन की शोभा उसके उपयोग में है ।
5.धन के व्यय में अगर कंजूसी की जाये तो वह किसी मतलब का नहीं रह जाता है, अत: उसे खर्च करते रहना चाहिऐ।
6.ऐसा धन जो अत्यंत पीडा, धर्म त्यागने और बैरियों के शरण में जाने से मिलता है, वह स्वीकार नहीं करना चाहिए।
7.बिना पढी पुस्तक की विद्या और अपना कमाया धन दूसरों के हाथ में देने पर समय पर न विद्या काम आती है न धनं.

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