आया फंदेबाज और बोला
''क्या दीपक बापू लिखते हुए थकते नहीं हो
इस दुनिया में क्या हो रहा है तकते भी नहीं
अरे कहाँ अंतर्जाल पर
ब्लोग लिखते जा रहे हो
लोग नाम, नामा, इनाम और सम्मान
बटोरते हुए मशहूर हो जायेंगे
तुम जैसे तकते रह जायेंगे
हाथ घिसते रहोगे, पर लोगों तक नहीं पहुंच जायेंगे
टोपी पहनते हुए कहैं दीपक बापू
''यह है अंतर्जाल
बहुत बड़ा मायाजाल
और एक इंद्रजाल
यहाँ केवल नाम नहीं चलेंगे
जो जलाएगा शब्दों को दीपक की तरह
उसकी रौशनी में उनके नाम ही चमकेंगे
यहाँ बडे-बडे नाम नहीं चलेंगे
कर सकते हैं जो गागर में सागर की तरह
शब्दों के संजोने का काम
उनके ही डंके यहाँ बजेंगे
इनाम तो आखिर अलमारी में ही सजते
पर यहाँ शब्दों में भर देंगे चमक
उनके नाम ही आकाश में तैरेंगे
नाम तो होगा बहुतों के पास तिजोरी में
पर जिनके शब्दों में होगी सोने की चमक
वही यहाँ साहित्य के साहूकार बनेंगे
लिखीं गईं किताबें पडी रहतीं हैं कबाड़ में
पर यहाँ सभी शब्द अलग-अलग
किताब की तरह खुले में सांस लेते रहेंगे
उनकी सांस तब भी चलेगी
जब हम शवासन में आ जायेंगे
रोज करते हैं नये प्रयोग
तकनीकी श्रेणी के नहीं है तो क्या
कभी इसके भी विशेषज्ञ कहलायेंगे
जो बाजार में सजते
वह शब्दों के खेल नहीं समझते
जो समझते हैं वह सबसे बचते हुए
बस रोज लिखते जायेंगे
उनको नाम, नामा, इनाम और सम्मान
कहीं भी न मिले
पर बाद में उनके नाम पर दिए जायेंगे
यह अंतर्जाल बहुत बड़ा मायाजाल
चंद शब्द लिखकर जो
फंसेंगे माया के चक्कर में
वह यहाँ कभी विजेता नहीं कहलायेंगे
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Thursday, February 28, 2008
अंतर्जाल है बहुत बड़ा मायाजाल-हास्य कविता
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1 comment:
आज तो बड़ा जोरदार लिखा है। :)
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