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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 2, 2008

इश्क और बजट-हास्य कविता

लिखते-लिखते लव हो गया
दिखते-दिखते हो गयी लड़ाई
लिखने में आशिक ने किये थे
ढेर सारे वादे
जीवन भर सुख से रहने के इरादे
पर मार गयी सब महंगाई
इश्क में कौन बजट की तरफ देखता है
साथ-साथ रहने पर आती है
जीवन की सच्चाई
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इक तरफा इश्क के शिकार
आशिक ने लिखा
''तुम मेरे को अपना बना लो
जीवन भर मजे कराऊंगा
जो भी कहोगी खरीद लाऊंगा
ऐसी कोई और मिलेगा तुम्हें साथी नहीं
तुम्हें घुमाने के लिए हवाई जहाज भी ले आऊँगा''

लौटती डाक से जवाब आया
''कभी अखबार में बजट पढ़ते हो या नहीं
खर्च के बहुत सारी मदें तो बताई
पर आय का कोई जरिया भी तो बताया होता
कि 'यहाँ से कमाकर लाऊँगा''
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