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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, March 18, 2008

पहले इंसान बनकर जीना चाहता हूँ-हिन्दी शायरी

जलकर राख होने से पहले
लोगों के अंधेरों में रौशनी बिखेरना चाहता हूँ
टूटकर बिखर जाने से पहले
बेसहारों का सहारा बनना चाहता हूँ
आसमान में उड़कर चले जाने से पहले
जमीन पर उम्मीद के फूल
बिखेर देना चाहता हूँ
सर्वशक्तिमान की दरबार में जाने से पहले
इंसान बनकर जीना चाहता हूँ
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1 comment:

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत भावुक करने वाली कविता।

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