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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, May 14, 2010

पैसा खेल रहा था क्रिकेट नहीं’-हिन्दी व्यंग्य (money and cricket T-20-hindi satire ariticle)

बीसीसीआई की-भारत का क्रिकेट नियंत्रक मंडल-टीम के खिलाड़ी वेस्टइंडीज के एक बार में वहां कुछ क्रिकेट प्रशंसकों के हाथों पिट गये। ताज्जुब है इस समय किसी बुद्धिजीवी को देश का अपमान नहीं अनुभव हो रहा है। शायद इसका कारण यह है कि मारने वाले भारत भक्त थे जिनकी शिकायत यह थी कि एक तो इन भारत के नाम पर खेलने वाले इन खिलाड़ियों ने कोई खेल नहीं दिखाया फिर हारने के बाद भी मौज करने के लिये बारों में घूम रहे हैं। इधर चैनल वालों की हवा निकल रही है क्योंकि क्रिकेट के आधार पर समय पास करने वाले उनके कार्यक्रम उनकी टीआरपी गिरा सकते हैं। वैसे भी भारत के समाचार चैनल केवल दस मिनट के समाचार देते हैं और बाकी फिल्म, टीवी धारावाहिक तथा क्रिकेट में मनोरंजन कार्यक्रम पेश कर पास करते हैं।
फिर इधर अपने देश में भी टीम की हार को लेकर आक्रोश नहीं दिखाई दे रहा। आक्रोश न दिखने का कारण यह भी हो सकता है कि क्रिकेट की लोकप्रियता शायद उतनी न रही हो जितना पहले थी पर नयी पीढ़ी का वह वर्ग जो मनोरंजन के साथ दाव लगाकर खुशी और गम मनाने के लिये जुड़ा है वह भी शायद अधिक नहीं है-अलबत्ता इतना तो है कि वह क्रिकेट के कर्णधारों का जेब भर सके। दूसरा यह भी कि विज्ञापनदाताओं को अपने उत्पादों के प्रचार से मतलब है न कि कार्यक्रम की गुणवता से इसलिये वह कोई दबाव नहीं डालते और यही कारण है कि क्रिकेट खेल के लिये मिलने वाले विज्ञापनों को देखकर यह भ्रम हो जाता है कि शायद क्रिकेट अधिक लोकप्रिय है।
बहरहाल समाचार पत्रों ने खिलाड़ियों के पिटने की खबर छापकर यह तो सिद्ध कर दिया कि देश का प्रबुद्ध वर्ग इस विषय पर उनके साथ नहीं है। इसका कारण यह नहीं है कि बीसीसीआई के खिलाड़ी केवल हारे नहीं ल्कि बहुत बदतमीजी से हारे। देश से क्या अपनी टीम से ही वफादारी उन्होंने नहीं निभाई। आज वह जो भी हैं बीसीसीआई की टीम में खेलने की वजह से है पर उनको उसकी उपसमिति से ज्यादा वफादारी हो गयी है। भारतीय कप्तान से जब विश्व  कप  की बात की जाती है तो वह बड़े रुखेपन से जवाब देता है और अगर आईपीएल की बात की जाये तो वह खुश हो जाता है। उसने यहां इतना पैसा कमाया कि उसका नशा अभी उतरा नहीं है। अगर उनके चेहरे को पढ़ा जाये तो बीसीसीआई को अपने खिलाड़ियों से इस बात का आभार व्यक्त करना चाहिये कि वह उनकी टीम के लिये खेले। इतने अमीर खिलाड़ी खेले क्या यह कम बात है?
एक समाचार चैनल पत्रकार वार्ता में भारतीय कप्तान के हंसने से नाराज है। अब उसे कैसे समझायें कि उसकी हंसी का राज क्या है?
दरअसल वह कप्तान हंस रहा है दूसरी टीमों पर जो सेमीफाइनल में पहुंच गयी हैं। वह मन ही मन सोच रहा होगा कि देखो इन मूर्ख खिलाड़ियों  को विश्व कप जीतकर भी क्या कमायेंगे जितना हमने आईपीएल में हमने कमाया। अरे, यहां तो केाई रात्रिकालीन पाटियों का भी प्रावधान नहीं है जबकि आईपीएल में बहुत कुछ मजा था। पार्टियों में अमीर मिलते तो कुछ खूबसूरत चेहरे भी दृष्टिगोचर होते। जिनके साथ फोटो अखबार में छपता तो मजा भी आता। यहां क्या है, जो सेमीफायनल और फायनल खेलने में वक्त खराब किया जाये। इसलिये जल्दी घर पहुंचो तो जो पैसा कमाया है उसे देखकर मजा लिया जाये। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि कोई अपने काम में दक्ष आदमी अगर सौ रुपया लेता है तो वह बीस रुपये में काम नहीं करता। अगर किसी चिकित्सक की फीस सौ रुपया है तो वह बीस रुपये वाले मरीज को नहीं देखना पसंद करता। अब लोगों को कौन समझाये कि बीसीसीआई के इन खिलाड़ियों को बस आईपीएल में मैच खेलना ही पसंद है क्योंकि वह अपने देश में विदेश जैसा आनंद देते हैं। कमाई और इज्जत एक साथ मिलती है। अपने चाणक्य महाराज कहते हैं कि विदेश में जाकर ही आदमी सम्मान अर्जित करता है ऐसे में जिन लोगों को घर में विदेश जैसा आराम और सम्मान मिले तो फिर बाहर जाकर क्यों खेलें?
आखिरी बात टीम के कोच गैरी कर्स्टन का कहना है कि इस टीम में आठ खिलाड़ी अनफिट थे और उनका वजन अधिक हो गया था। उनकी आदतें खराब हो गयी हैं जिसमें वह सुधार नहीं लाना चाहते। भारतीय खिलाड़ी हारने के बावजूद बार में गये-यकीनन वहां अमृत नहीं मिलता है। आईपीएल की रात्रिकालीन पार्टियों की आदत अब उनसे नहीं छूट सकती। अगर इस टीम के आठ खिलाड़ी अनफिट थे जो एक दिन में नहीं हुए होंगे। यहां हुई क्ल्ब स्तरीय मैचों के दौरान ही ऐसा हुआ होगा पर पता नहीं चला क्योंकि अपने देश में गेंद उछलती कम है और वेस्टइंडीज में स्थिति उलट है। वहां बाउंसरों के सामने उनकी पोल खुल गयी। इसका मतलब यह है कि आईपीएल में अनफिट खिलाड़ियों को दर्शकों ने देखा और पसंद किया। अनफिट यानि कूड़ा।
अपने देश की साथ ही यही होता है। यहां कूड़ा भी हिट होता है। फिर क्रिकेट लोग देखते अधिक हैं खेलने वाले उतने नहीं है। उनको यह पता ही नहंी पड़ता कि कौन कूड़ा है और कौन सोना! फिर सोने की पहचान किसे है? जौहरी अगर पीतल को भी सोना बताये तो कौन उस पर यकीन नहीं करेगा। क्रिकेट के जौहरी तो यही कर रहे हैं। आखिरी बात देश में पैसा बहुत है पर यह तरक्की का प्रमाण नहीं है। शराब पीने और और रोटियां खाने से पेट बढ़ाकर पहलवान नहीं हो जाया करते। यह अलग बात है कि मोहल्ले में कोई पहलवान न हो तो चाहे जैसा दावा करते फिरो। अगर धनी आदमी हो तो फिर कहना ही क्या? कुश्ती मत लड़ो! दूसरे लड़ें तो उन पर हंसो। वैसे अपने देश के पैसा लेकर कूड़ा ही बेचा जा रहा है-हम चीन का उदाहरण देख सकते हैं जो अपने घटिया सामान भेज रहा है। अब क्या करें पैसा आने से अक्ल नहीं आती भले ही हमारी अमीर को अक्लमंद मानने की आदत हो। फिर अमीरी सभी को हजम नहीं होती चाहे वह क्रिकेट खिलाड़ी हो। इसलिये हम कह सकते हैं कि भारत में पैसा क्रिकेट खिला रहा था और वेस्टइंडीज में उसने साथ छोड़ दिया।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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