अंतर्जाल पर अगर लिखते रहें तो अच्छा है, पर पढ़ना एक कठिन काम है। दरअसल लिखते हुए दोनों हाथ चलते हैंे और आंखें बंद रहती हैं तब तो ठीक है क्योंकि तब सामने से आ रही किरणों से बचाव होने के साथ दोनों हाथों के रक्त प्रवाह का संतुलन बना रहता है।
लिखते हुए आंखें बंद करने की बात से हैरान होने की आवश्यकता नहीं है। अगर आपको टाईपराइटिंग का ज्ञान है और लिखते भी स्वतंत्र और मौलिक हैं तो फिर की बोर्ड पर उंगलियों और दिमाग का काम है आंखों से उसका कोई लेना देना नहीं है।
सच बात तो यह है कि कंप्यूटर पर काम करते हुए माउस थकाता है न कि की बोर्ड-अपने अनुभव से लेखक यही बात समझ सका है।
जब भी इस लेखक ने कंप्यूटर खोलकर सीधे लिखना प्ररंभ किया है तब लगता है कि आराम से लिखते जाओ। हिन्दी टाईप का पूरा ज्ञान है इसलिये उंगलियां अपने आप कीबोर्ड पर अक्षरों का चयन करती जाती हैं। एकाध अक्षर जब अल्ट से करके लेना हो तब जरूर कीबोर्ड की देखना पड़ता है वरना तो दो सो से तीन सौ अक्षर तो ं कब टंकित हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। हालत यह होती है कि सोचते हैं कि चार सौ शब्दों का कोई लेख लिखेंगे पर वह आठ सौ हजार तक तो पहुंच ही जाता है। यही वजह है कि अनेक बार कवितायें लिखकर काम चला लेते हैं कि कहीं गद्य लिखने बैठे तो फिर विषय पकड़ना कठिन हो जायेगा।
अगर कहीं माउस पकड़ कर अपने विभिन्न ब्लागों की पाठक संख्या देखने या अन्य ब्लाग पढ़ने का प्रयास किया तो दायां हाथ जल्दी थक जाता है। वैसे फायर फाक्स पर टेब से काम कर दोनों हाथ सक्रिय रखे जा सकते हैं पर तब भी आंखें तो खुली रखनी पड़ेंगी। फिर आदत न होने के कारण उसमें देर लगती है तब माउस से काम करने का लोभ संवरण नहीं हो पाता। वैसे एक कंप्यूटर विशारद कहते हैं कि अच्छे कंप्यूटर संकलक तथा संचालक कभी माउस का उपयेग नहंी करते। शायद वह इसलिये क्योंकि वह थकावट जल्दी अनुभव नहीं करते होंगे।
आंखें बंद कर टंकण करने का एक लाभ यह भी है कि आप सीधे अपने विचारों को तीव्रता से पकड़ सकते हैं जबकि आंखें खोलकर लिखने से एकाग्रता तो कम होती है साथ ही दूसरे विचार की प्रतीक्षा करनी पड़ती है और कभी कभी तो एक विचार निकल जाता है दूसरा दरवाजे पर खड़ा मिलता है। तब पहले को पकड़ने के चक्कर में दूसरा भी लड़खड़ा जाता है और वाक्य कुछ का कुछ बन जाता है। कंप्यूटर का सबसे अधिक असर आंखों पर पड़ता है पर एक हाथ माउस पकड़ना भी कम हानिकारक नहीं है। वैसे हमारे देश में लोग इस बात की परवाह कहां करते हैं। अधिकतर लोग पश्चिमी में अविष्कृत सुविधाजनक साधनों का उपयोग तो करते हैं पर उससे जुड़ी सावधानियों को अनदेखा कर जाते हैं।
वैसे कंप्यूटर से ज्यादा हानिकारक तो हमें मोबाईल लगता है। उन लोगों की प्रशंसा करने का मन करता है तो उस पर इतने छोटे अक्षर देखकर टाईप करते हैं। उनकी स्वस्थ आंखें और हाथ देखकर मन प्रसन्न हो उठता है। उस एक मित्र ने हमसे कहा ‘यार, तुम्हारा मोबाईल बंद था, तब मैंने तुम्हें एसएमएस भेजा। तुमने कोई जवाब भी नहीं दिया।’
हमें आश्चर्य हुआ। उससे हमने कहा कि ‘मैं तो कभी मोबाईल पर मैसेज पढ़ता नहीं। तुमने अपने मैसेज में क्या भेजा था?’
‘तुम्हारे ब्लाग की तारीफ की थी। वहां कमेंट लिखने में शर्म आ रही थी क्योंकि वहां किसी ने कुछ लिखा नहीं था कि हम उसकी नकल कर कुछ लिख जाते। तुम्हारी पोस्ट एक नज़र देखी फिर उसे बंद कर दिया। तब ख्याल आया कि चलो तुम्हें एसएमएस कर देते हैं। किसी ब्लाग की एक लाख संख्या पार होने पर तुम्हारा पाठ था।’
हमने कहा‘अच्छा मजाक कर लेते हो!’
मित्र ने कहा‘ क्या बात करते हो। तुम्हारे साथ भला कभी मजाक किया है?’
हमने कहा-‘नहीं! मेरा आशय तो यह है कि तुमने अपने साथ मजाक किया। इतना बड़ा कंप्यूटर तुम्हारे पास था जिस पर बड़े अक्षरों वाला कीबोर्ड था पर तुमने उसे छोड़कर एक छोटे मोबाईल पर संदेश टाईप कर अपनी आंखों तथा हाथ को इतनी तकलीफ दी बिना यह जाने कि हम उस संदेश को पढ़ने का प्रयास करेंगे या नहीं।’
-----------कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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