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Monday, February 21, 2011

पहरे साथ लेकर वह लूट में जुटे हैं-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (pahare sath lekar loot-hindi vyangya kavitaen)

अपने चेहरे कालिख से पुते हैं,
वही दूसरों की कमीज पर
दाग लगाने में जुटे हैं।
अपने चरित्र को ईमान से नहीं नहला सकते,
ज़माने में सभी की नाक पर फब्तियां कसते,
कौन कर सकता है दबंगों कीशिकायत
पहरे साथ लेकर वह लूट में जुटे हैं।
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कब सोचा था हमने कि
ज़माने को लूटने वाले
कभी अपनी ईमान का दम भरेंगे,
एक दूसरे को बेईमान बताते पहरेदार
लुटेरों का नाम लेते हुए भी डरेंगे।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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