करते है लोग लोग शिकायत
असली फूलों में अब वैसी
सुगंध नहीं आती
नकली फूलों में ही इसलिये
असली खुशबू छिड़की जाती
दौलत के कर रहा है खड़े नकली पहाड़ आदमी
पहाड़ों को रौदता हुआ
नैतिकता के पाताल की तरफ जा रहा आदमी
सुगंध बिखेर कर खुश कर सके उसे
यह सोचते हुए भी फूल को शर्म आती
...............................
नकली रौशनी में मदांध आदमी
नकली फूलों में सुगंध भरता आदमी
अब असली फूलों की परवाह नहीं करता
पर फिर भी उसके मरने पर अर्थी में
हर कोई असली फूल भरता
भला कौन मरने पर उसकी सुगंध का
आनंद उठाना है
यही सोचकर असली फूलों की
आत्मा सुंगध से खिलवाड़ करता
..............................
धूप में खड़े असली फूल ने
कमरे में सजे असली फूल की
तरफ देखकर कहा
‘काश मैं भी नकली फूल होता
दुर्गंधों ने ली मेरी खुशबू
इसलिये कोई कद्र नहीं मेरी
मै भी उसकी तरह आत्मा रहित होता’
फिर उसने डाली
नीचे अपने साथ लगे कांटो पर नजर
और मन ही मन कहा
‘जिन इंसानों ने कर दिया है
मुझे इतना बेबस
फिर भी मेरे साथ है यह दोस्त
क्या मै इनसे दूर नहीं होता
........................................
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Thursday, April 24, 2008
फूल और कांटे-हिंदी शायरी
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1 comment:
wah kya baat hai bahut khub sach nakali phulon ka hi raaj jai aaj kal,asli phul bas murjha jate hai.
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