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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, April 2, 2008

मयखाने से जब निकले थे-हिन्दी शायरी

मयखाने से जब निकले थे
आखिरी बार
तब सोचा न था कि अब
यहां फिर कभी नहीं हम नहीं आयेंगे
अब भी देखते हैं राह पर चलते हुए
मयखानों की तरफ
पर अस्पताल जाने के डर से
मूंह फेर जाते हैं
घर में रखी आधी बोतल देखकर भी
डर जाते हैं
मन में आते ही कब पी जायेंगे
पता नहीं कब मय के डर के मुक्त हो पायेंगे

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