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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, March 11, 2009

दर्द चाहे जितना खरीदो-व्यंग्य कविता

वह दिखाते अपनी तस्वीरों और शब्दों में लोगों के घाव।
प्रचार में चलता है इसलिये हमेशा चलता है उनका दाव।।
अपने दर्द से छिपते हैं दुनियां के सभी लोग
दूसरे के आंसू के दरिया में चलाते दिल की नाव।।
जज्बातों के सौदागर इसलिये कोई दवा नहीं बेचते
दर्द चाहे जब जितना खरीदो, एक किलो या पाव।।

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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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