हर शाम अपने काम की
खबर देने अखबार के दफ्तर जाते हैं
सुबह पढ़ाते सभी को
फिर अखबार की कतरन
एलबम में सजाते हैं।
इसी तरह अपने कामयाबी के
प्रमाणपत्र सभी को दिखाते हैं।
सुनाते हैं दूसरों के कारनामे
अपने नाम से
टकराते हैं जाम अपना जाम से
सबूत के लिये
उधार के कारनामे अपने नाम लिखा लाते हैं।
चाहे कर ले कोई कितने भी जतन
लोग उनकी कद्र कहां करते हैं
जो अपने मियां मिट्ठू बन जाते हैं।
दूसरे की कामयाबी पर
रोटियां सैंकने की आदत है जिनकी
जरूरत होती है उनको ही
अखबार की कतरनों की
दिल से काम करने वाले
एक कामयाबी लेकर
दूसरी ओर बढ़ जाते हैं
उनके प्रमाण लोगों के
दिमाग के खुद ही छा जाते हैं।
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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