सोच भले ही दूर तक जाये
पर पांव भला हद से बाहर
कहां जा पाते।
तन्हाई के साथी ख्याल तो
हवा में उडते हैं
पर हाथ में पंख नहीं लग पाते।
इसलिये सपने देखकर
भूलना ही अच्छा लगता है
भले ही नापसंद हो
पर हकीकत से संग नहीं छुड़ा पाते।
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उनके घर यूं न गये
क्योंकि भले ही दरवाजे खुले थे
पर दिल तो बंद थे।
उन तक पहुंचने के रास्ते तो च ौड़े थे
पर सच के दायरे तंग थे।
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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