‘आजकल खुल गयी है
सच बोलने वाली मशीन की दुकानें
उसमें ले जाकर अपने आशिक को आजमाओ।
कहीं बाद में शादी कर पछताना न पड़े
इसलिये चुपके से उसे वहां ले जाओ
उसके दिल में क्या है पता लगाओ।’
माशुका को आ गया ताव
भूल गयी इश्क का असली भाव
उसने आशिक को लेकर
सच बोलने वाली मशीन की दुकान के
सामने खड़ा कर दिया
और बोली
‘चलो अंदर
करो सच का सामना
फिर करना मेरी कामना
मशीन के सामने तुम बैठना
मैं बाहर टीवी पर देखूंगी
तुम सच्चे आशिक हो कि झूठे
पत लग जायेगा
सच की वजह से हमारा प्यार
मजबूत हो जायेगा
अब तुम अंदर जाओ।’
आशिक पहले घबड़ाया
फिर उसे भी ताव आया
और बोला
‘तुम्हारा और मेरा प्यार सच्चा है
पर फिर भी कहीं न कहीं कच्चा है
मैं अंदर जाकर सच का
सामना नहीं करूंगा
भले ही कुंआरा मरूंगा
मुझे सच बोलकर भला क्यों फंसना है
तुम मुझे छोड़ भी जाओ तो क्या फर्क पड़ेगा
मुझे दूसरी माशुकाओं से भी बचना है
कोई परवाह नहीं
तुम यहां सच सुनकर छोड़ जाओ
मुश्किल तब होगी जब
यह सब बातें दूसरों को जाकर तुम बताओ
बाकी माशुकाओं को पता चला तो
मुसीबत आ जायेगी
अभी तो एक ही जायेगी
बाद में कोई साथ नहीं आयेगी
मैं जा रहा हूं तुम्हें छोड़कर
इसलिये अब तुम माफ करो मुझे
अब तुम भी घर जाओ।’
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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