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Friday, August 28, 2009

फरिश्तों का मुखौटा-हिंदी हास्य कविताएँ (farishton ka maukhauta-hindi hasya kavitaen)


पर्दे पर आंखों के सामने
चलते फिरते और नाचते
हांड़मांस के इंसान
बुत की तरह लगते हैं।
ऐसा लगता है कि
जैसे पीछे कोई पकड़े है डोर
खींचने पर कर रहे हैं शोर
डोर पकड़े नट भी
खुद खींचते हों डोर, यह नहीं लगता
किसी दूसरे के इशारे पर
वह भी अपने हाथ नचाते लगते हैं
...........................
चारो तरफ मुखौटे सजे हैं
पीछे के मुख पहचान में नहीं आते।
नये जमाने का यह चालचलन है
फरिश्तों का मुखौटा शैतान लगाते।

........................
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1 comment:

Asha Joglekar said...

नये जमाने का यही चाल चलन है
फरिश्तों का मुखौटा शैतान लगाते हैं ।

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