एक दिन में पचास ओवर की
जगह बीस ओवर वाले मैच खेलेंगे।
देखने वाले तो देखेंगे
जो नहीं देखने वाले
वह तो व्यंग्य बाण ऐसे भी फैंकेंगे।
सच है जब बीस रुपये खर्च से भी
हजार रुपया कमाया जा सकता है तो
पचास रुपये खर्च करने से क्या फायदा
फिल्म हो या खेल
अब तो कमाने का ही हो गया है कायदा
पचास ओवर तक कौन इंतजार करेगा
जब बीस ओवर में पैसे से झोला भरेगा
मूर्खों की कमी नहीं है जमाने में
मैदान पर दिखता है जो खेल
उस पर ही बहल जाते हैं लोग
नहीं देखते कि खिलाड़ियों को
अभिनेता की तरह पर्दे के पीछे
कौन लगा है नचाने में
पैसा बरस रहा है खेल के नाम पर
फिल्म वाले भी लग गये उसमें काम पर
दाव खेलने वाले भी
जल्दी परिणाम के ंलिये करते हैं इंतजार
खिलाने वाले भी
अब हो रहे हैं बेकरार
पैसे का खेल हो गया है
खेलते हैं पैसे वाले
निकल चुके हैंे कई के दिवाले
खाली जेब जिनकी है
बन जाते समय बरबाद करने वाले
अभिनेताओं में भगवान
खिलाड़ियों में देवता देखेंगे।
कहें दीपक बापू
‘नकली शयों का शौकीन हो गया जमाना
चतुरों को इसी से ही होता कमाना
पर्दे के नकली फरिश्तों के जन्म दिन पर
प्रचार करने वाले नाचते हैं
मैदान पर बाहर की डोर पर
खेलने वालों के करतबों पर
तकनीकी ज्ञान फांकते हैं
जब हो सकती है दो घंटे में कमाई
तो क्यों पांच घंटे बरबाद करेंगे
बीस रुपये में काम चलेगा तो
पचास क्यों खर्च करेंगे
आम आदमी हो गया है
मन से खाली मनोरंजन का भूखा
जुआ खेलने को तैयार, चाहे हो पैसे का सूखा
जिनके पास दो नंबर का पैसा
वह खुद कहीं खर्च करें या
उनके बच्चे कहीं फैंकेंगे।
खेल हो या फिल्म
जज्बातों के सौदागर तो
बस! अपना भरता झोला ही देखेंगे।
................................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment