कभी कालीन पर तो
कभी पथरीले रास्ते पर पांव
जिंदगी हर पल रंग
बदलती जाती है
फिर भी क्यों नहीं समझती आंखें
खुशी में झूमती हैं
गम होने परं आंसुओं से नहाती है।
समंदर भी खुशी का कभी
डराने लगता है
एक धारा में बहते हुए
एक रंग की कहानी कहते हुए
उकताहट हो जाती है
तब किसी का गम भी
रंग बिरंगा लगता है
उसमें ही रस की खुशबू आती है
बदलते अहसासों के लिये
पल पल बदलती है रंग
जिंदगी रंग बिरंगी कहलाती है।
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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