सच माने
उसकी भी एक उम्र होती।
सोच के अंधेरे में
जब तक दिखता
सच लगता है
जो रौशन हुए ख्याल
उसकी तस्वीर खंड खंड होती।
सौ बार बोलने से झूठ भी
सच लगने लगता है
पर उसकी तस्वीर मुकम्मल नहीं होती।
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
No comments:
Post a Comment