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Thursday, November 12, 2009

इश्क का सबूत-हास्य व्यंग्य कविता (ishq ka saboot-hasya vyangya kavita)

आशिक ने कहा माशुका से
‘तुझे में इतना प्यार करता हूं
तेरी हर अदा पर मरता हूं
तुम कहो तो चांद को जमीन
पर ले आंऊ।’
सुनकर माशुका ने कहा
’‘किस जमाने में रहते हो
जो यह पौंगापंथी बातें कहते हो
चांद क्या सिर में डालूंगी
छोटे से कमरे में
मेरा ही दम घुटता है
उसे रखकर मैं कैसे चैन पा लूंगी
वैसे तो मेरी समस्या पानी की है
जिससे भरते हुए
मेरी सुबह परेशानी में गुजरती है
नल कभी आते नहीं हैं
टैंकर के इंतजार में बैठकर आहें भरती हूं
नहीं आता तो फिर
दूर जाकर बर्तन में पानी भरती हूं
सुना है चांद पर भी पानी है
हो सके तो वहां से
पानी को धरती पर लाने का जुगाड़ बनाओे
शादी बाद में होगी
पहले तुम आधुनिक भागीरथ बन कर दिखाओ
तो मैं सारे जमाने को अपने इश्क का सबूत दिखाऊं।’’

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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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