वह शिखर पर चढ़ जाते हैं,
जब चलाना है ज़माना,
जारी रखते हैं अपना कमाना,
फिर खाली समय
खेल तमाशों में बिताते हैं,
फरिश्तों की तरह देकर बयान
अपने जश्न में ही
दुःखी लोगों को
खुशियां मनाना सिखाते हैं,
खाली पेट तरसते रहें रोटी को
फिर भी वह बादशाहों की सूची में
वह अपना नाम लिखाते हैं।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।शासक, शासित, जनता और सरकार, व्यंग्य कविता,भारत में लोकतंत्र,भारत में प्रजातंत्र,bharat mein prajatantra,bharat mein loktantra,bharat mein azadi,bharat men vyastha,democracy in india,janta aur sarkar,vyangya kavita,shasak,shasit,khel tamasha,zanana aur kamana
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