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Monday, September 21, 2009

रहना अज़नबी होकर-हिंदी शायरी (rahana aznabi hokar-hindi shayri)

हमने छोड़ दिया यकीन करना
धोखे की बचने को यही रास्ता मिला
उधार तो अब भी देते हैं
वापसी पर नहीं होता किसी से गिला.
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दोस्ती में धोखे होते हैं
फिर क्यों रोते हैं.
अपनी हकीकत अपने से न छिपा सके
दोस्त को बाँट दी
हो गए बदनाम तो फिर क्यों रोते हैं.
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गैरों में अपनापन क्यों तलाशते हो
अपनों से अजनबी होकर.
वो गैर भी किसी के अपने हैं
जो आये हैं कहीं से अजनबी होकर.
रिश्ते भूल गया है निभाना
पूरा ही ज़माना
उम्मीद तो करते हैं सभी
एक दूसरे से वफ़ा की
फिर भी मारते हैं ठोकर
भले ही अपनों से अजनबी हो जाओ
पर फिर भी गैर से न उम्मीद करना
उसके लिए भी रहना अजनबी होकर.

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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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