विकास के वादों का
मौसम जब आता
तब भी अब दिल नहीं मचलता
मालुम है कि
वादा भूलने के लिये ही किया जाता है।
कुछ हो जायेगा जमाने का भी भला
भर जायेगा जब
वादे करने वालों का घर
विकास से,
तब टपक कर सड़क पर भी
कुछ बूंदें आ ही जायेगा
भले ही बरसात में बह जाता है।
-------
उम्मीद होने पर
तमाम वादे किये जाते हैं।
पूरी होने पर निभाये कोई
इस पर गौर मत करना
झोली भर गयी जिनकी विकास से
दूसरों का दर्द वह भूल जाते हैं।
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorमौसम जब आता
तब भी अब दिल नहीं मचलता
मालुम है कि
वादा भूलने के लिये ही किया जाता है।
कुछ हो जायेगा जमाने का भी भला
भर जायेगा जब
वादे करने वालों का घर
विकास से,
तब टपक कर सड़क पर भी
कुछ बूंदें आ ही जायेगा
भले ही बरसात में बह जाता है।
-------
उम्मीद होने पर
तमाम वादे किये जाते हैं।
पूरी होने पर निभाये कोई
इस पर गौर मत करना
झोली भर गयी जिनकी विकास से
दूसरों का दर्द वह भूल जाते हैं।
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
No comments:
Post a Comment