जब आमादा होता है इंसान,
हवस में ढूंढता है अमृत
चंद लफ्ज हमदर्दी के जताने वाले को
फरिश्ता समझ लेता है।
पेट की भूख तो मिटा देती है रोटी
पर हवस में अंधा इंसान
अपनी तकदीर अपने हाथ से बिगाड़ लेता है।
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रोटी के भूखे को एक टुकड़ा भी
खुश कर जायेगा,
आधा पेट भरने पर भी
वह खुश हो जायेगा।
मगर अपनी हवस में ढूंढते हैं तकदीर
वह हमेशा रहेगा भूखा
जब तक सामने से आकर कोई
आंख में नश्तर न चुभा जायेगा।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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2 comments:
wow !!!!!!!!!
kintu amrit shabd ka acha stamal kiya aap ne
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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