‘दीपक बापू
तुमने अपनी पूरी जिंदगी
क्रिकेट मैच देखने में गंवाई,
कुछ धंधे पानी की सोचते तो
पर कभी ‘चैरिटी’ (समाज सेवा) करने पर
अपनी अक्ल न चलाई,
करते तुम भी लोगों का भला
हो जाती तुम्हारी भी कमाई।’
सुनकर दीपक बापू हुए हैरान फिर बोले
‘अगर ‘चैरिटी’ के नाम पर
धंधा करना होता तो
फिर क्रिकेट ही क्या जरूरी है,
नहीं कोई ऐसी मजबूरी है,
चाहे चुनो कोई भी काम
‘चैरिटी’ की आड़ में करो सबका काम तमाम
जैसे अनाथ बच्चों की सेवा,
या फूंको वह मुर्दे जिनका नहंी कोई नामलेवा,
चल निकलता है धंधा,
कभी नहीं आता मंदा,
मुश्किल यह है कि भले आदमी को
अब अच्छे काम करने नहीं दिये जाते,
सारे काम
शातिरों के हिस्से में आते,
साठ बरसों से देश में गरीबी बढ़ी है,
वह दूर न हो सकी
पर बन गये उनके महल जिन्होंने
उसे हटाने की लड़ाई लड़ी है।
समाज सेवा का धंधा पुराना है,
करना नहीं किसी का भला
बस करते सभी को सुनाना है,
कभी चैरिटी के नाम पर होता था
फिल्मों का प्रदर्शन,
कभी नकली कुश्ती का दिखता था मंचन,
आजकल कहीं गरीबों, मजदूरों और बेबसों की चैरिटी के लिये
चल रही गोलियों और फट रहे बम,
कहंी क्रिकेट खेल दिखा रहा है दम,
सभी जगह दलालों ने खोल ली है
समाज सेवा की दुकान,
कमाई उनका लक्ष्य होता है
चाहे देश का हो नुक्सान,
सोचते सभी है अमीर बनने की
पर यह संभव नहीं है कि
समाज सेवा से हर कोई करे कमाई,
भलाई करने के लिये अब
सज्जन होना भी जरूरी नहीं है
चालाकी हो तो ही जीत सकते हो लड़ाई।
इसमें सारे काम करना ठीक है
छोड़कर किसी की सच में भलाई।
दूर रहे इसलिये हमेशा इससे
यह बात पहले ही हमारी समझ में आई
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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