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Wednesday, April 28, 2010

ज़माने की मजबूरी या कुदरत की मंजूरी-हिन्दी शायरी (zamane ki mazboori ya kudrat ki manjoori-hindi shayari)

ऊंचे सिंहासन पर बैठने से
चरित्र ऊंचा नहीं हो जाता,
अगर हो इंसान ईमानदार तो
ऊंचा सिंहासन नसीब में नहीं आता।
पर मजबूरी है चारणों की जो स्तुति करते हैं,
शब्दों में स्वामी के काल्पनिक गुण भरते हैं,
ज़माने की मजबूरी कहें,
या कुदरत की मंजूरी कहें,
सिंहासन पर बैठे राजा का
फरिश्ते जैसा दिखना जरूरी है,
शैतान भी आकर बैठ जाये तो
उसको ईमानदार बताना मज़बूरी है
शायद इसलिये ही चंद टुकड़ों की खातिर
लिखे गये चमत्कारी अफसाने
दिखाये कातिलों के बहादुरी के कारनामे
लूट लिया जिन्होंने जमाने को
पर नायकों जैसा उनका वजूद बताया जाता।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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