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Sunday, May 2, 2010

सर्वशक्तिमान का दरवाजा-हिन्दी हास्य कविता (thief and states-hindi hasya kavita)

हांफता हुआ आया फंदेबाज
और बोला
‘दीपक बापू,
आज तो निकल गया इज्जत का जनाजा
बज जायेगा मेरे नाम का भी बाजा,
घर से पर्स में केवल पचास रुपये
लेकर निकला था कि कट गया,
मेरे लिये तो जैसे आसमान फट गया,
अब चिंता इस बात की है कि
कभी चोर पकड़ा गया तो
मेरा पर्स भी दिखायेगा,
उसमें मेरा परिचय पत्र है तो
वह नाम भी लिखायेगा,
दुःख इस बात का है कि
पचास रुपये थे उसमें
यह सुनकर हर कोई मुझ पर हंसेगा,
तब हमारा सिर शर्म के मारे जमीन में धंसेगा,
तरस जायेगा इज्जतदार मेहमानों के लिये
हमारे घर का दरवाजा।’

सुनकर तमतमाते हुए दीपक बापू बोले
‘बेशर्मी की भी हद करते हो,
पर्स में रखते हो परिचय पत्र
फिर पचास रुपये उसमें धरते हो,
दुआ करो चोर पकड़ा न जाये,
या पैसे निकालकर उसे कहीं फैंक आये
पकड़ा गया तो
उसकी बद्दुआ तुम्हारे नाम पर भी आयेगी,
जेल में पहुंचे है हजारों करोड़ चुराने वाले
उसे देखकर उसकी रूह शरमायेगी,
पहले अगर जेल जाकर भी वह चोर नहीं सुधरा होगा
क्योंकि उसने वहां अपने जैसों को ही बंद देखा होगा,
अब पहुंचेगा तो अपने को ‘गरीब श्रेणी’ में पायेगा,
मिलेंगे उसे ऐसे साथी, जिनकी लूटी रकम की बराबरी
वह सैंकड़ों जन्मों तक की चोरी में भी नहीं कर पायेगा,
बाहर की आजादी को तरसा करेगा,
जब ‘उच्च स्तरीय चोरों’ की गुलामी में चिलम भरेगा,
तब देगा उन घर स्वामियों को गालियां,
जिनके तालों में घुसी थी उसकी तालियां (चाबियां),
पकड़ा वह चोर न जाये,
या फिर पर्स उसका खो जाये
इसके लिये प्रार्थना करो
खुला है इसके लिये
बस एक सर्वशक्तिमान का दरवाजा।’
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह ! क्या बात है ..
अब तो हज़ार से नीचे का नोट जेब मे रखना ही नहीं है ... आखिर इज्ज़त का सवाल है !

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