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Wednesday, June 23, 2010

आकाश की छतरी-हिन्दी कविता (akash ki chatri-hindi poem)

रिश्तों से हट गया विश्वास
भला कहां टिक पायेगा,
रोज मिलते हैं लोग यहां
करते हैं ज़माने की शिकायत
अपने अंदर नहीं अपनी ही
उम्मीद पूरी करने का आसरा,
दूसरा कोई इंसान
आकाश की छतरी बनाकर क्यों लगायेगा।
जागते हुए सो रहे सभी लोग
इस विश्वास में
कोई फरिश्ता आकर उनको जगायेगा।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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