सपने देखने के लिये भी
सोच उधार लेते हैं,
अपनी मंज़िल क्या पायेंगे वह लोग
जो हमराह के रूप में कच्चे यार लेते हैं,
अपने ख्वाबों में चाहे कितने भी देखे सपने
आकाश में उड़ने के
पर इंसान को पंख नहीं मिले
फिर भी कुछ लोग उड़ने के अरमान पाल लेते हैं।
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लोगों में चेतना लाने का काम
भी अब ठेके पर होने लगा है,
जिसने लिया वह सोने लगा है,
मर गये लोगों के जज़्बात
मुर्दा दिलों में हवस के कीड़ों का निवास होने लगा है।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:
अच्छ लिखा है आपने ……………………बढिया
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